प्रतिभा की कलम से.. सही-गलत, श्लील-अश्लील की परिभाषा से कहीं बहुत ऊपर है प्रेम (चुंबन)
कभी कहीं किसी विज्ञापन में एक लाइन पढ़ी थी- do you close your eyes when you are kissed! 😀😀
प्रेमी-प्रेमिका का चुंबन दो लोगों के बीच एक बेहद निजी मामला है, इसलिए गलती से कभी कोई दिख भी जाएं तो समझदार लोग इन्हें देखकर अनदेखा कर देते हैं। हकीकत की दुनिया में तो ऐसे दृश्यों से सब बचकर ही चलते हैं। लेकिन, फिल्मों पर क्या करें जहां अधिकतर में यह जबरदस्ती ठूंसे से जान पड़ते हैं। मुश्किल तब और ज्यादा आन पड़ती है जब हम पूरे परिवार के साथ बैठकर फिल्म देख रहे हों।
राजा हिंदुस्तानी, मिस्टर इंडिया, रेस, धूम, मर्डर, उत्सव आस्था, सत्यम शिवम सुंदरम, आराधना, बॉबी जैसी सैकड़ों फिल्में हैं जो अपने गीत-संगीत के साथ-साथ नायक-नायिका के चुंबन दृश्यों के कारण भी काफी चर्चित रहीं।
सिनेमा के शुरुआती दौर में नायिका का चरित्र भी पुरुष कलाकार ही निभाते थे, इसलिए ऐसे दृश्यों की कमी रही। फिर 1933 के आसपास फिल्मों में पदार्पण हुआ देविका रानी का। देविका रानी ने न सिर्फ़ नायिका के किरदार निभाए बल्कि एक फिल्म कर्मा में अपने पति हिमांशु राय के साथ चार मिनट लंबा चुंबन दृश्य भी दिया। आजादी से पहले की फिल्मों में ऐसे दृश्यों की कमी फिर न रही। लेकिन, बाद में सेंसर बोर्ड ने शिष्टता और सामाजिकता संबंधी कुछ नियम जारी कर दिए तो निर्देशकों ने फूल या पक्षियों के बीच प्रेम प्रदर्शित करते सांकेतिक शालीन दृश्यों पर जोर दिया। 1965 की हिट फिल्म “गाइड” में गाता रहे मेरा दिल गीत के एक दृश्य में देव साहब का वहीदा रहमान के चेहरे पर झुकना और वहीदा के शर्माते चेहरे पर कैमरे का उनके लरजते होठों पर फोकस होना, 1973 की खूबसूरत संगीतमय फिल्म “अभिमान” के “रे आय हाय तेरी बिंदिया” गीत में होंठ पर चुपके से उंगली रख नवविवाहिता जया का मुखड़ा चुंबन की कल्पना की लाज से गुलाबी करते अमिताभ! जैसे दृश्यों के माध्यम से भी दर्शकों के मन में गुदगुदी जगाने की खूबसूरत कोशिश सुसंस्कृत निर्देशकों ने ख़ूब की है।
ऐसा नहीं है कि चुंबन हमेशा नायक-नायिका के बीच प्रेम-प्रदर्शन के लिए ही इस्तेमाल होते हैं। कहानी में मांग के हिसाब से भी कभी ऐसे दृश्य डालने जरूरी हो जाते हैं। अगर मैं गलत नहीं हूं तो शायद “चित्रलेखा” फिल्म में पाप और पुण्य को समझने के फेर में उलझे महमूद को मीना कुमारी चुंबन देकर ही समझाती हैं कि प्रेम क्या है?
सही-गलत, श्लील-अश्लील की परिभाषा से कहीं बहुत ऊपर ब्लैक फिल्म में भी रानी मुखर्जी और अमिताभ बच्चन के बीच एक बेहद जरूरी चुंबन दृश्य है। गूंगी,बहरी और नेत्रहीन युवती के किरदार में रानी मुखर्जी अपने अध्यापक मिस्टर सहाय से चाहती है कि एक बार, सिर्फ़ एक बार वह उसके होठों को चूम लें।
अमिताभ अभिनय के राजा हैं, लेकिन रानी भी इस दृश्य में उनसे कहीं कम नहीं लगी हैं। गज़ब का सीन है यह, जो दर्शकों में सनसनी नहीं बल्कि मिशेल की अंधेरी दुनिया की घुटन को महसूस करते हुए उसके प्रति सहानुभूति जगाता है। उस एकमात्र चुंबन की ख़्वाहिश पूरी कर उसके अध्यापक का उसकी दुनिया से दूर चले जाना दर्शकों के मन में सम्मान पैदा करता है।
उसके बाद की कहानी से आप लोग वाक़िफ होंगे कि चालीस वर्ष की उम्र में ही सही लेकिन मकड़ी की तरह अनवरत प्रयास करते-करते बारह बरस बाद एक दिन मिशेल के ग्रेजुएट हो जाने का सपना पूरा हो ही जाता है। इस सपने को पूरा करने में कहीं ना कहीं वह प्रेम था जो उस दिन अध्यापक के होंठों के स्पर्श से मिशेल ने महसूस करना चाहा। सिर पर काला हैट पहने, हाथ में ग्रेजुएशन की डिग्री लिए अपने अध्यापक के प्रति कृतज्ञ होती मिशेल के चेहरे का आत्मविश्वास और बच्चों की तरह ठुमकते वृद्ध, असहाय, अवश मिस्टर सहाय की आंखों से बहते संतोष के आंसू ..जैसे दर्शकों की आत्मा पर ईश्वर का शीतल चुंबन।
प्रतिभा की कलम से