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लोक कहानियां, लोकगीत, लोककला मनुष्य के व्यक्तित्व विकास व चरित्र निर्माण में सहायक: प्रो डंगवाल

-अंतरराष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस पर दून विश्वविद्यालय में कुलपति प्रो सुरेखा डंगवाल ने किया वेबकास्ट का उद्घाटन। 22 व 23 फरवरी को सांस्कृतिक परिषद के तत्वावधान में काव्य पाठ, एलिकयूशन, लोक संगीत, सुगम संगीत, नाटक आदि सांस्कृतिक कार्यक्रमों का होगा आयोजन

देहरादून (Dehradun)। लोक साहित्य, लोक कहानियां, लोकगीत व लोककला का मनुष्य के व्यक्तित्व विकास और चरित्र निर्माण में महत्वपूर्ण स्थान होता है। इनका संरक्षण आने वाली पीढ़ियों के मार्गदर्शन के लिए आवश्यक है। दून विश्वविद्यालय (Doon university) की कुलपति प्रो सुरेखा डंगवाल (vice chancellor Pro Surekha Dangwal) ने यह बात अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर वेबकास्ट के उदघाटन कार्यक्रम में कहीं। उन्होंने कहा कि तकनीकी युग में भाषा का विस्तार हुआ है।
उन्होंने कहा कि प्रतीकात्मक भाषा से ऑनलाइन कंप्यूटर की भाषा का सफर हमने तय कर लिया है। भारत बहुभाषी देश है, हमें लुप्त होती लोक भाषाओं व लोक कलाओं को संरक्षण व संवर्धन के लिए आगे आना होगा। कुलपति ने कहा कि भाषाओं के ज्ञान के साथ ही उसकी संस्कृति, प्रकृति व परंपरा का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।
विश्वविद्यालय के कुलसचिव (Doon university registrar) डॉ
मंगल सिंह मंद्रवाल (Dr mangal Singh mandrawal) ने बताया कि मातृभाषा दिवस के क्रम में 22 और 23 फरवरी को विश्वविद्यालय परिसर में सांस्कृतिक परिषद के तत्वावधान में काव्य पाठ, एलिकयूशन, लोक संगीत, सुगम संगीत, नाटक आदि
सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जायेगा। इनमें प्रतिभाग करने वाले विद्यार्थियों को प्रमाण पत्र प्रदान किए जाएंगे।

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