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पुष्पा जोशी ‘प्राकाम्य’ की पर्यावरण दिवस पर एक रचना… कर मेरा श्रँगार तू

पुष्पा जोशी ‘प्राकाम्य’
शक्तिफार्म, सितारगंज
ऊधमसिंहनगर, उत्तराखंड
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कर मेरा श्रँगार तू
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हरी-भरी वसुंधरा,
कह रही पुकार के,
कर मेरा श्रँगार तू,
रख मुझे निखार के।

वृक्ष मेरे वस्त्र हैं,
काट नग्न कर रहा,
आज लाज माँ की बेच,
मोद मन में भर रहा।
त्रासदी केदार-सी,
न रख दे फिर से मार के।
कर मेरा श्रँगार तू,
रख मुझे निखार के।

विश्व ताप बढ़ रहा,
जीव भी सुलग रहा,
वृक्ष, जमीं, पर्वतों को,
काटता क्यों चल रहा।
आपदाएँ कारण हैं,
तेरे ही प्रहार के।
कर मेरा श्रँगार तू,
रख मुझे निखार के।

आज हो सतर्क तू,
कर नहीं कुतर्क तू,
छेड़ न प्राकृति को,
बिगाड़ न आकृति को।
फिर नये प्रयास कर,
बागों में बहार के।
कर मेरा श्रँगार तू,
रख मुझे निखार के।

मैल कारखानों की,
गंध इन दवाओं की,
हवा विषैली कर रही हैैं,
जल विषैला कर रहीं।
बन गये हैं कारण,
ये प्राणों पर प्रहार के।
कर मेरा श्रँगार तू,
रख मुझे निखार के।

शुद्ध है नदी का जल,
मिला नहीं तू जल में मल।
जो एक वृक्ष काटना‌ है,
सैकड़ों लगाता चल।
निधि अमूल्य पाएगा,
मैं कह रही पुकार के।
कर मेरा श्रँगार तू,
रख मुझे निखार के।

दूँ रसीले‌फल तुझे,
मैं शुद्ध तुझे वायु दूँ।
दूँ पवित्र जल तुझे,
मैं स्वस्थ-लम्बी आयु दूँ।
चल डगर सँवार के,
दिन आएंगे मनुहार के।
कर मेरा श्रँगार तू,
रख मुझे निखार के।।

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