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कजाकिस्तान से हरिद्वार पहुंचे राजहंस, बढ़े श्रद्धालु और सैलानी

-तापमान में वृद्धि होने के साथ प्रवासी राजहंस स्वदेश वापसी की उड़ान भरने के लिए गढ़वाल के अलग-अलग इलाकों से हरिद्वार पहुंचने लगे हैं। मिस्सरपुर गंगा घाट में 100 से 120 राजहंस का झुंड पहुंचा है। उत्तराखंड के हरिद्वार में गंगा तट समेत अन्य तालाब और वैटलैंड में आने वाले राजहंस मुख्यत कजाकिस्तान से आते हैं।

शब्द रथ न्यूज, ब्यूरो (Shabd Rath News)। मौसम में बदलाव और कोरोना संक्रमण का डर खत्म होने के बाद हरिद्वार में बाहरी राज्यों के श्रद्धालु और सैलानियों की संख्या बढ़ने लगी है। शनिवार-रविवार को बड़ी संख्या में लोग हरिद्वार पहुंचे और गंगा में डुबकी लगाई। सुबह से शाम तक गंगा घाटों पर काफी संख्या में यात्री नजर आए। वहीं, प्रवासी राजहंस अलग-अलग इलाकों से हरिद्वार पहुंचने लगे हैं। मिस्सरपुर गंगा घाट में 100 से 120 राजहंस का झुंड पहुंचा है। मिस्सरपुर समेत गंगा के घाटों पर राजहंस के झुंड का आने का सिलसिला जारी है। मार्च पहले सप्ताह तक प्रवासी राजहंस अपने देश लौट जाएंगे।

रविवार को सुबह से हाईवे पर बाहरी राज्यों से आने वाले वाहनों को रैला लगा हुआ था। जैसे-जैसे दिन चढ़ा गंगा घाटों पर लोगों की भीड़ बढ़ने लगी। श्रद्धालुओं ने गंगा स्नान करने के बाद मंदिरों में जाकर दर्शन किए। श्रद्धालुओं ने शहर के अपर रोड, बड़ा बाजार, मोती बाजार, सुभाष घाट समेत अन्य बाजारों में श्रद्धालुओं ने खरीदारी भी की।

पिछले पखवाड़े बारिश/ठंड के कारण काफी कम लोग हरिद्वार घूमने पहुंच रहे थे। बर्फबारी देखने के लिए पहाड़ों की तरफ सैलानी रुख कर रहे थे। ऐसे में हरकी पैड़ी समेत सभी गंगा घाटों पर बहुत कम श्रद्धालु नजर आते थे। पिछले कुछ दिनों से मौसम बदल रहा है। तपमान बढ़ रहा है। ऐसे में दिल्ली एनसीआर, उत्तर-प्रदेश, पंजाब, हरियाणा से बड़ी संख्या में लोग यहां पहुंचने लगे हैं।

कजाकिस्तान से आते हैं राजहंस

उत्तराखंड के हरिद्वार में गंगा तट समेत अन्य तालाब और वैटलैंड में आने वाले राजहंस मुख्यत कजाकिस्तान से आते हैं। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के जंतु एवं पर्यावरण विज्ञान विभाग के एमेरिटस प्रोफेसर डॉ दिनेश भट्ट के शोध छात्रों की टीम प्रवासी पक्षियों की निगरानी करती है। डॉ भट्ट ने बताया कि प्रवासी पक्षियों का पलायन करना विवशता है। लगभग 40 डिग्री उत्तरी अक्षांश से ऊपर जितने भी शीत प्रदेश हैं, वहां 5 से 6 माह तक बर्फ जमी रहती है। शोध छात्र आशीष कुमार आर्य ने बताया कि राजहंस करीब 8600 फीट ऊंचाई के हिमालयी क्षेत्रों को पार कर मंगोलिया, कजाकिस्तान, चीन, नेपाल और भूटान से शीतकालीन प्रवास के लिए भारतीय उपमहाद्वीप में आते हैं।

पलायन के अतिरिक्त नहीं होता कोई विकल्प 

इस प्रतिकूल मौसम में पक्षियों को वहां खाने पीने में काफी दिक्कतें होती हैं। उनका प्राकृतिक आवास बर्फ गिरने से बुरी तरह प्रभावित होता है। जिससे पक्षियों के पास पलायन के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं होता। यह पलायन इनके शारीरिक एवं मानसिक क्रियाओं में मौसमी परिवर्तन के असर से संभव हो पाता है। प्रो भट्ट ने बताया कि हरिद्वार समेत प्रदेश में तापमान वृद्धि होने लगी है।

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