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राज्य की ही तरह ये पंक्तियां भटकी और अधूरी सी हैं…

डॉ अजय सेमल्टी
गढ़वाल विश्वविद्यालय
श्रीनगर गढ़वाल, उत्तराखंड
CC-SA-NC-ND
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बीस साल बाद उत्तराखंड…….

राज्य की ही तरह ये पंक्तियां
भटकी और अधूरी सी हैं
ना गद्य है ना पद्य है
न ग़ज़ल है ना रूबाई है
हर इक पहाड़ी कि रुसवाई है।
ना जाने कितने संघर्षों,
कितने बलिदानों से पाया है
कभी उत्तरांचल कभी उत्तराखंड
बस नाम ही तो पाया है।

कभी जनसंख्या के आधार पर
विधानसभाओं का सीमांकन
पहाड़ी राज्य की परिकल्पना
उस पर है बड़ा यक्ष प्रश्न,
डूब कर, बह कर, दरक कर
पेड़ों पर चिपक कर
हमने क्या पाया है।

अब भी नदी किनारे
कई गांव- शहर हैं प्यासे
हस्पताल डॉक्टर को प्यासे
तीस साल में पुल बनेगा
अप्रोच रोड का फिर बजट बनेगा
फिर चुनाव फिर वादे
कभी बीजेपी, कांग्रेस में
कभी कांग्रेस, बीजेपी में
धुला दूध में, बस जो सत्ता में
जनता जनार्दन बस चुप्पी में…
बोल पहाड़ी कुछ तो बोल
मत बोल हल्ला कुछ तो बोल….

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सर्वाधिकार सुरक्षित।
प्रकाशित…..09/11/2020
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