वरिष्ठ कवि जय कुमार भारद्वाज ‘अरुण’ की पहाड़ पर बहुत ही सुन्दर कविता… पहाड़ शान्त है
जय कुमार भारद्वाज ‘अरुण’
देहरादून, उत्तराखंड
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पहाड़ शान्त है
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आधुनिकता के विषैले पंजों की
मजबूत पकड़ से दूर
शान्त मौन सन्यासी सा
जीवन जीता है पहाड़
आज भी।
ठहरा है ठीक उसी जगह
जहाँ कभी पहाड़ ने लिया था जन्म
पहाड़ के बचपन पर
पड़ी सौ सौ झुर्रियां
गवाह हैं इस बात की
कि
पहाड़ ने जिया है
निर्विकार, निष्काम जीवन
हालाँकि
पहाड़ के पास है
एक पूरा शिकायतनामा
फिर भी।
वह मौन है
सदियों से
उसका दर्द है
अनदेखा अनसुना आज भी
आदमी ने
छला है पहाड़ को
झूठे सुख के लिए
तराशा है
अपने वैभव के लिए
रौंदा है
पैरों तले अनेकों बार
झूठे दंभ और दर्प के लिए।
फिर भी
पहाड़ शान्त है
सदियों के दर्द के साथ
पहाड़ के मजबूत कलेजे में
बसी है ममता
जो फूट पड़ती है
ठंडा पानी बनकर
ठीक उसी तरह
जैसे माँ दौड़ पड़ती है
भूख से बिलखते बच्चे की
भूख मिटाने के लिए।
पहाड़ की पथरीली पगडंडी पर
अर्ध नगन नंगे पांव पाँव दौड़ते बच्चे
सिर पर पूरे घर का भार ढोती महिलाएँ
सीमा की रक्षा के लिए गए
जवान फौजी बेटे की राह में
पलकें बिछाये
दो जोड़ी पथरीली आँखें
कहती हैं पहाड़ की कहानी
कि
पहाड़ आज भी
वहीं खड़ा है
जहाँ खड़ा था
सदियों पहले पहाड़।।