वरिष्ठ कवि पागल फकीरा की एक ग़ज़ल… जीवन तो है खेल तमाशा, चालाकी नादानी है…
पागल फकीरा
भावनगर, गुजरात
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ग़ज़ल
जीवन तो है खेल तमाशा, चालाकी नादानी है,
तब तक ज़िंदा रहते हैं, हम जब तक कि हैरानी है।
आग, हवा, मिट्टी, पानी मिल कर रहते है कैसे ये,
देख के ख़ुद को हैरां हूँ मैं, जैसे ख़्वाब कहानी है।
मंज़र को आख़िर क्यूँ कर मैं, पहरों तकता रहता हूँ,
ऊपर ठहरी चट्टानें है, राह में बहता पानी है।
मुझको एक बीमारी है, तंद्रा में चलते रहने की,
रातों में भी कब रुकता है, मुझ में जो सैलानी है।
कल तक जिसने दुत्कारा, कह कह पागल पागल मुझको,
दोस्त वही दुनिया तो अब फ़क़ीरा की दीवानी है।