शरद पूर्णिमा: जब 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है चन्द्रमा, खीर बन जाती है अमृत
-सनातन (हिन्दू) धर्म में प्रत्येक महीने आने वाली पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है। इनमें शरद पूर्णिमा को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इस वर्ष आज (शुक्रवार) है शरद पूर्णिमा का पावन दिन
शब्द रथ न्यूज। शरद पूर्णिमा (sharad Purnima) के दिन चन्द्रमा अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होकर धरती पर अमृत की वर्षा करता है। शरद पूर्णिमा की रात खीर बनाकर चांद की रोशनी में रखी जाती है। चन्द्रमा से गिरती अमृत की बूंदें खीर पर पड़ती हैं और खीर को भी अमृत बना देती हैं, ऐसी मान्यता है। अगले दिन सुबह खीर को प्रसाद के रूप में परिवार के सदस्य ग्रहण करते हैं। मान्यता है कि जो व्यक्ति शरद पूर्णिमा पर खीर का प्रसाद ग्रहण करता है, उसके शरीर से कई रोग खत्म हो जाते हैं। शरद पूर्णिमा को लक्ष्मी जी की पूजा का भी विधान है।
इस वर्ष आज (शुक्रवार) शरद पूर्णिमा का पावन दिन है। सनातन (हिन्दू) धर्म में प्रत्येक महीने आने वाली पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है। इनमें शरद पूर्णिमा को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है। चन्द्रमा अपनी किरणों से अमृत की बूंदे पृथ्वी पर गिराते हैं। इसके अलावा शरद पूर्णिमा की रात ही देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर आती हैं। शरद पूर्णिमा को कौमुदी यानी मून लाइट, आश्विन और कोजागरी पूर्णिमा भी कहते हैं।
धरती के सबसे नजदीक रहता है चन्द्रमा
शास्त्रों के अनुसार शरद पूर्णिमा की तिथि पर चंद्रमा पृथ्वी के सबसे नजदीक रहता है। रात को चंद्रमा की किरणों में औषधीय गुण की मात्रा सबसे ज्यादा होती है जो मनुष्य को तरह तरह बीमारियों से छुटकारा पाने में मदद करती है। चंद्रमा की किरणों में औषधीय गुण होने के कारण शरद पूर्णिमा की रात को खीर बनाकर उसे खुले आसमान के नीचे रखा जाता है। रात भर खीर में चंद्रमा की किरणें पड़ने के कारण खीर में चंद्रमा की औषधीय गुण आ जाते हैं। इन औषधीय गुणों को ही अमृत कहा गया है। अगले दिन यह खीर खाने से सेहत पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। खीर चांदी के बर्तन में रखने को श्रेष्ठ माना गया है। चांदी का बर्तन न होने पर किसी भी बर्तन में रखा जा सकता है।
शरद पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त
शुक्रवार की शाम 5 बजकर 45 मिनिट से पूजा का मुहूर्त शुरू हो रहा है। यह शनिवार सुबह 8 बजकर 18 मिनिट तक रहेगा।
धार्मिक लोगों के लिए यह है पूजा का विधान
-सुबह स्नान के बाद ध्यान पूर्वक माता लक्ष्मी और श्रीहरि की पूजा करें। फिर गाय के दूध में चावल की खीर बनाकर रख लें।
-लक्ष्मी माता और भगवान विष्णु की पूजा करने के लिए लाल कपड़ा या पीला कपड़ा चौकी पर बिछाकर माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की प्रतिमा इस पर स्थापित करें।
-तांबे या मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढकी हुई लक्ष्मी जी की स्वर्णमयी मूर्ति की स्थापना का भी विधान है।
-भगवान की प्रतिमा के सामने घी का दीपक जलाएं, धूप करें। इसके बाद गंगाजल से स्नान कराकर अक्षत और रोली से तिलक लगाएं।
– तिलक के बाद सफेद या पीले रंग की मिठाई से भोग लगाएं। लाल या पीले पुष्प अर्पित करें। माता लक्ष्मी को गुलाब का फूल अर्पित करना विशेष फलदाई माना गया है।
-शाम को चंद्रमा निकलने पर सामर्थ्य के अनुसार गाय के शुद्ध घी के दीये जलाएं। इसके बाद खीर को छोटे छोटे बर्तनों में भरकर छलनी से ढककर चंद्रमा की रोशनी में रख दें।
-फिर ब्रह्म मुहूर्त में जाग कर विष्णु सहस्त्रनाम का जप, श्रीसूक्त का पाठ, भगवान श्रीकृष्ण की महिमा, श्रीकृष्ण मधुराष्टकम् का पाठ और कनकधारा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
-पूजा की शुरूआत में भगवान गणपति की आरती अवश्य करें।
अगली सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके चन्द्रमा की रोशनी में रखी खीर को मां लक्ष्मी को अर्पित करें और प्रसाद रूप में खीर घर-परिवार के सदस्यों में बांट दें।