नवोदित शीबू डोबरियाल की एक रचना… ऐ जिन्दगी
शीबू डोबरियाल
———————————————
ऐ जिन्दगी
जिंदगी हर दिन एक जंग सी लगती है,
कभी पहलू में मेरे तो
कभी तेरे लगती है,
कभी पास आके बैठ,
तो बताएं हमें कितनी बेरहम लगती है।
हर दिन ये मुझसे मेरे ही जवाबों पे एक नया सवाल पूछती है,
कि तू तो कभी न झुकने वाली थी!!!
क्या … हार गई आज की कहानी से???
मैने भी हंस के कह दिया, न हारी हूं… और न हारूंगी…
बस अब ऊबा देती है ये, तेरी रोज की बचकानी गाथाएं,
है दम तो कुछ मजेदार पटकथा दिखा,
रोमांच से भरा कोई नया नाट्य तो लेके आ।
ज़रा रूबरू तो आ, तो मैं महसूस करूं और फिर कहूं…
जिंदगी तू तो सच में एक जंग सी लगती है…
मुस्कुरा के फरमाया, जिंदगी ने कुछ इस तरह से…
शेरनी है तू मेरी, जो कोई जंग हारती नहीं
शेरनी बनाए रखने के लिए ही तुझे….
जिंदगी हर दिन एक जंग सी लगती है।।