कृष्ण जन्माष्टमी पर सुलोचना परमार उत्तरांचली की एक रचना
सुलोचना परमार उत्तरांचली
देहरादून, उत्तराखंड
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ओ मेरे माखन चोर कन्हैया,
कब से खड़ी हूँ तेरे द्वार।
मैं ही मीरा मैं ही राधा,
आ सुन ले मेरी पुकार।
ओ कान्हा मेरे, सुन ले मेरी पुकार…
तेरी ही धुन में मस्त रही मैं,
छोड़ा सभी घर-द्वार।
बाँसुरी की धुन सुन तेरी,
नाचूं मैं बारम्बार।
ओ कान्हा…
ग्वाल बाल संग खेले कूदे,
और लीला रचाई हजार।
आ के देखो दशा गायों की,
रोयें हैं वो जार-जार।
ओ कान्हा…
मंदिरों में मूरत बनकर,
हँसे तू क्यों बार-बार।
तेरी भूमि ही पुकारे तुझको,
देखो बनी वो लाचार।
ओ कान्हा…
विषधर हो गए बहुत देश में,
इनके फन कुचलो इस बार।
भाई-भाई संग प्रेम रहा नहीं,
आ बाँसुरी बजा दे एक बार।
ओ कान्हा…
तेरे ही देश में सर उठा रहे सब,
अब दुश्मन अपने ही हजार।
लो सुदर्शन चक्र हाथ में,
तुम कर दो इनका संहार।
ओ कान्हा…
सब गीता के उपदेश भूल गए,
यहां पैसा ही है धारदार।
आ जाओ तुम मेरे कान्हा,
अब ले के नया अवतार।
ओ कान्हा मेरे…सुन ले मेरी पुकार…ll