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सुमन पांथरी रतूड़ी की एक रचना… एक शाम खुशफहमियों की

सुमन पांथरी रतूड़ी
वाराणसी, उत्तर प्रदेश
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एक शाम खुशफहमियों की

चलो एक शाम बैठकर आसमां से बातें करेंगे
निहारेंगे उस चाँद को और सितारे गिनेंगे
गढेंगे एक कहानी गगन के उस क्षितिज की
कहेंगे कहानी परिलोक की परियों की
खयालों में होगी आसमां की सैर

न जमीं होगी पराई
और न ये आसमां होगा गैर
थाम लेंगे हथेली में टूटते सितारों को
रोक लेंगे इन नजाकती बहारों को
उन टूटे सितारों से आशियाना खुद का सजायेंगे,
उस आशियाने की छत से बदलों की पत॔ग उड़ायेंगे

सहलाकर चाँद का माथा
पूछेंगे उसकी दिल की बात
मुस्कराता ये दिल होगा
बड़ी ही ख़ुशगवार होगी वो
रात
कुछ अपनी कहेंगे, कुछ उसकी सुनेंगे
भूल कर उलझनें
सुकून कुछ मुहजबानी लिखेंगे

अलसाई आँखों की उन्नींदी नींदे
सबनमी बिछौना और नींदों के सपने
चलो उस शाम के अफ़साने लिखेंगे
जमीं पर रहकर उस नीले जहाँ के फसाने लिखेगें।

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