कवि सुनील शर्मा की देशभक्ति की एक रचना.. मेरा देश हुआ शर्मिंदा मुट्ठी भर गद्दारों से!
सुनील शर्मा
गुरुग्राम, हरियाणा
———————————
मेरा देश हुआ शर्मिंदा मुट्ठी भर गद्दारों से!
घायल हुआ तिरंगा हरदम अपनी तलवारों से!
जो वीरों की कुर्बानी का कर्ज चुकाना भूल गए!
कागज के टुकडों में बिक कर फर्ज निभाना भूल गए!!
ऐसे देश द्रोहियों का मैं गुणगान नहीं करता!
जो पीछे से वार करे, उसका सम्मान नहीं करता!!
हैं कुछ लोग रास्ता रोका करते सुखद सवेरों का!
आमंत्रित करते रहते हैं काले सघन अंधेरों का!!
उनके काले कर्म उजालों को कैसे सह पायेंगे
उनकी कुटिल कहानी को उजले दर्पण कह जाएंगे!
मातृभूमि का मान हरें, मैं उनका मान नहीं करता!
जो पीछे से वार करें उनका सम्मान नहीं करता!!
कब तक हंसों के मोती को, कागा ग्रास बनाएंगे
अन्नदान करने वालों को, कब तक उपवास कराएंगे!!
जो कुटिया से लहू खींच कर, निज भवनों को सींच रहे!
निर्धन बच्चों के मुख से जो लोग निवाला खींच रहे!
ऐसे लोगों के भंडारों पर अनुदान नहीं करता!
जो पीछे से वार करें उनका सम्मान नहीं करता!!
कर्जदार है रोम-रोम, उन सरहद के रखवालों का
काल को भी आंखें दिखला दें ऐसे हिम्मत वालों का
जिनकी फौलादी छाती ने जिद्दी पर्वत ठेले हैं
अधरों पर मुस्कान सजा कर, खेल मौत के खेलें हैं
ऐसे शेर सूरमाओं पर जो अभिमान नहीं करता
जो पीछे से वार करे उनका सम्मान नहीं करता!!