तारा पाठक की एक कुमाऊनी बाल कविता… नानि-नानि नातिणि हमरि
तारा पाठक
वर्सोवा मुंबई, महाराष्ट्र
———————————-
नानि-नानि नातिणि हमरि
ठुल्लो छ मिजात।
द्वि म्हैंणैं उमर में कें
मैं ल्हिनूं सन बाथ।
गोवा क् बीच हिटौ
वैं करुंल ऐराम।
आमा तु लै हिट दगड़ै
करली मेरी फाम।
खीराक् चशम पैरुंल
पैरुंल बाथरोब।
त्वी हुं लै ल्हिराखौ आमा
अंग्रेजिया टोप।
फैशन में टुटी भाय औरै
द्वियै बुढी़-बाव।
एक आँखौ चशम भौक्
ल्हि भाजि गो काव।
——————————————-
शब्दार्थ-
नानि-नानि-छोटी छोटी
ठुल्लो-बड़ा
मिजात-फैशन
ऐराम-आराम
दगड़ै-साथ
फाम-देखरेख
टुटी भाय-मस्त
बुढ़ी-बाव-वृद्धा-बालक
भाजि गो-भाग गया
काव्-कव्वा