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तारा पाठक की एक रचना.. दखल अंदाजी प्रकृति से मौसम हुआ भुलक्कड़

तारा पाठक
वर्सोवा, मुंबई, महाराष्ट्र
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प्रकृति से छेड़खानी का नतीजा
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दखलअंदाजी प्रकृति से
मौसम हुआ भुलक्कड़।
तोड़ प्राकृतिक नियम तरीके
बना मनमौजी फक्कड़ ।

सावनभर सूखे ने मारा
मेघ बरसना भूल गया।
सूखी धरती देख तब चौंका
भादों में रिमझिम झूल गया।

खोल पिटारा झड़ियों का
जाने फिर कैसे बिसर गया।
डूबा जन जीवन पानी में
स्वयं कहाँ जा पसर गया।

ऐसे बरसा, फिर-फिर बरसा
शरद समूचा निगल गया।
चेता पुनश्च सरे पूस वह
जेठ का सूरज उगल गया।

आभास हुआ जब भूलों का
हेमन्त धरा पर दर्शाया।
वैशाख-जेठ की भट्टी में
ओला-बरफ सब बरसाया।

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