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मुंबई महाराष्ट्र से तारा पाठक की एक रचना.. गिरिराज के वक्ष स्थल से गंगा सागर तक

तारा पाठक
वर्सोवा, मुंबई महाराष्ट्र
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गंगा-सागर
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मैंने माँ गंगा से पूछा-
तुम तो गिरिराज के वक्ष स्थल पर सोहती थी।
बर्फ कठोर थी,घुल कैसे गई?
माँ गंगा बोली-
मैं बावरी गिरिराज से नेह बाँध बैठी थी।
उस कठोर प्रियतम की कठोर छाती पर सिर टिकाए
अपनी संतति (बनस्पति)के लिए
घुलना चाहती थी।
ममता में बहना चाहती थी।
वो प्रियतम प्रेम में तनिक न झुका,
आज भी अडिग है।
मैं सच्ची प्रीत की तलाश में
भटकती रही,बहती गई।
और मिल गई सागर से।
जहाँ पहुँच पाया मैंने
अपना अभीष्ट।
उस प्रियतम ने मुझे
निज अँक में समा लिया।
हृदय में बसा लिया।
मोती -माणिक्य के उपहार दिये।
मुझको निज में एकाकार किया।
मैं कहलाई-गंगा सागर।
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