तारा पाठक की बाल कहानी … सुसंस्कारों की फसल
तारा पाठक
हल्द्वानी, उत्तराखंड
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बाल कहानी … सुसंस्कारों की फसल
नित्यानंद जी ने बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ सदा संस्कारों का भी पाठ पढ़ाया था। लेकिन, कोई काम करने को बाध्य नहीं करते थे। बच्चों को अच्छी बातें सिखाने के अलावा वे स्वयं भी उन पर अमल करते थे।उनका मानना था कि जबरदस्ती थोपने से तो स्वयं नैतिक जीवन जियो।हम नित्य संध्या-पूजा करेंगे तो हमारे बच्चों का रुझान भी इस ओर होगा, चाहे आंशिक ही सही। किसी जरूरतमंद की मदद करेंगे तो बच्चों में भी परोपकार की भावना जागृत होगी।
जिस प्रकार बढ़ई का बेटा पिता का व्यवसाय सहज ही संभाल लेता है।कुम्हार का बेटा नित्य चाक पर मिट्टी के बर्तन बनते देखता है और एक दिन कुशल कुंभकार बन जाता है, उसे किसी प्रशिक्षण की जरूरत नहीं होती है। नैतिकता की आबोहवा स्वत: नैतिक चरित्र निर्माण कर लेती है।
“जीवों पर दया करो” की माला हम जपते रहेंगे। लेकिन, किसी बेजुबान पर पत्थर फेंकेंगे तो हमारा मौखिक उपदेश व्यर्थ जाएगा।
एक दिन की बात है नित्यानंद जी मंदिर जा रहे थे, छोटा बेटा भी साथ हो लिया। राह में एक अत्यंत दुर्बल कुत्ता दिखा, जो कूड़े के ढेर में खाना खोज रहा था। नित्यानंद जी के मन में दया के बादल छाने लगे। लेकिन, बरसने से पूर्व विचार आया कि बेटे की परीक्षा लेने का यह उचित समय है। बेटे की ओर मुखातिब होकर बोले-
“देखो बेटा कितना भूखा है। पेट पिचक कर बिना ‘पत्र का लिफापा’ बना हुआ है।”
बेटे ने कहा “पिताजी क्या हम कुछ खाने को नहीं दे सकते?”
नित्यानंद जी – “घर से पैसे भी नहीं लाया, वरना दो बिस्कुट ही खिला देते।ये घड़ी निकल जाती बेचारे की। जेब में बस पाँच रुपये पड़े हैं जो कि बताशे लेने के लिए हैं”। बेटे की प्रतिक्रिया जानने हेतु क्षणभर को चुप हो गए।
बड़ी ही मासूमियत से बेटे ने कहा- “पाँच रुपये का बिस्कुट ही खिला दो, भोले बाबा को फूल चढ़ा देंगे।”
“लेकिन बेटा जो पैंसे भोले बाबा के बताशों के लिए है, उन पैसों से इसे बिस्कुट खिला देंगे तो कहीं भगवान हमसे रुष्ट न हो जाएं।”
आश्चर्य मिश्रित निगाहों से पिताजी को देखकर बोला- “आप ही कहते हैं ‘भगवान भाव के भूखे होते हैं। सच्ची श्रद्दा हो तो फूल पाकर भी प्रसन्न हो जाते हैं।’ भूखे जीव को भोजन देने से तो भगवान और भी ज्यादा प्रसन्न होंगे। बताशे चढ़ाने वाले श्रद्धालु बहुत होंगे। लेकिन, भूखे को भोजन देने बाले गिने चुने ही होंगे। वैसे भी आप कहते हैं- जीव मात्र में भगवान का वास होता है।”
बेटे का दया भाव जानकर नित्यानंद जी मन ही मन प्रसन्न हुए, उनके द्वारा बोए गए सुसंस्कारों के बीज अंकुरित ही नहीं हुए वरन् उचित तरीके से पनपने भी लगे हैं।