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तारा पाठक की बाल कहानी .. सबक

बाल कहानी .. सबक

“छि: मैं दाल नहीं खाऊंगी, आपने धनिया क्यों डाला?”
स्पर्धा ने खाने की प्लेट आगे सरका दी और गुब्बारे की भांति मुँह फुला लिया।

“ठीक है बेटा कल को धनिया डालने से पहले ही तुम्हारे लिए दाल निकाल लुंगी, आज खा लो।”

एक-एक हरे पत्ते बिनते हुए स्पर्धा ने कुछ खाना खाया, कुछ बिगाड़ा।

अगले दिन माँ ने धनिया डालने से पूर्व ही बेटी के लिए दाल निकाल कर रख दी। सभी खाना शुरू कर रहे थे, मांँ ने कहा-
“बेटा आज तुम्हारी दाल में धनिया नहीं डाला।” डोंगा उसकी ओर बढ़ा दिया।

स्पर्धा ने खुश होकर प्लेट में दाल डाली।
“मम्मी आप ढंग की दाल नहीं बना सकती?”

क्यों? अब क्या हो गया, आज धनिया नहीं डाला फिर भी तेरा मुँह टेड़ा हो रहा है।”

“ये देखो टमाटर के छिलके कैसे लग रहे हैं, सारा स्वाद खराब हो गया।”

सभी खाना खा रहे थे, कोई कुछ नहीं बोला। बस माँ ने तिरछी नजर से घूरा।स्पर्धा समझ गई, मम्मी को बुरा लगा है करके। आज भी कुढ़ती-चिढ़ती हुई टमाटर चुन-चुनकर अलग करती जा रही थी।

ऐसे ही एक दिन जीरे के दाने चुन-चुन कर प्लेट के किनारे पर लगा रही थी, तब मम्मी स्वयं को रोक नहीं सकी-
“क्यों स्पर्धा तुम्हें कैसा खाना पसंद है?”
स्पर्धा कुछ नहीं बोली। प्रश्नात्मक दृष्टि से माँ को देखने लगी।

“बेटा तुम न धनिया पसंद करती हो, न टमाटर, न हीं जीरे के दाने।

“मैंने आज तो नहीं कहा ना मैं नहीं खाती।”

“तो इस तरह से बीनना भी तो अच्छा नहीं लगता। साथ खाने वालों को भी घिन आती है।”

“मैं नहीं खाऊंगी ऐसा खाना, दाल में इतने बड़े दाने हैं।”
उस दिन तो हद हो गई जब स्पर्धा खाने के बीच से उठ कर चली गई।

“कितने नखरे हैं इस लड़की के, ठहर जा तुझे छन्नी लगाकर देती हूँ। सभी खा रहे हैं। छोटी बहन कभी कुछ नहीं कहती। आज भूखी रहेगी तब पता चलेगा अन्न क्या चीज़ है। “माँ ने स्पर्धा को सबक सिखाने की ठान ली, पर किसी को कुछ नहीं बताया।

अगले दिन बच्चों की छुट्टी थी, सुबह से माँ रसोई में खाना बनाने में जुटी हुई थी। बच्चे बाहर से खेल कर आए, खाने की खुशबू सारे घर में फ़ैल रही थी। रसोई में जाकर पूछने लगे-“मम्मी क्या-क्या बना रही हो, बड़ी खुशबू आ रही है।”

“आज मैं स्पर्धा की पसंद का खाना बना रही हूँ। जल्दी जाकर नहा-धो लो।” स्पर्धा मां से लिपट गई।

उत्तरा नहा कर बाहर आई।
“दीदी आप भी जल्दी से फ्रेश हो जाओ, बड़ी जोर की भूख लगी है।”

चहकती हुई स्पर्धा नहाने चली गई, सोच रही थी-पता नहीं मम्मी ने मेरी पसंद का ऐसा क्या बनाया होगा? खाने की टेबल पर सभी उसी का इंतजार कर रहे थे। सभी की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी कि स्पर्धा के लिए स्पेशल है क्या? आज उत्तरा माँ से थोड़ा नाराज़ हो रही थी कि मम्मी ने मेरी पसंद का तो कभी नहीं बनाया, ये दीदी के भाव कितने बढ़े हुए हैं। माँ ने खाना लगाते हुए एक डोंगा स्पर्धा की ओर बढ़ाया-
“लो बेटा तुम्हारे पसंद का स्पेशल खाना।”
प्लेट निकालते हुए स्पर्धा बड़ी उतावली जान पड़ रही थी, उसने डोंगे का ढक्कन खोला।

डोंगे का ढक्कन खोला और स्पर्धा का चेहरा धप से बुझ गया, वह आहत सी बोली-
“मम्मी ये क्या गरम पानी स्पेशल है?”

सभी को आश्चर्य हो रहा था कि माँ ने गरम पानी क्यों रखा स्पर्धा के लिए, क्या वो मजाक कर रही हैं? कहीं कुछ छुपा तो नहीं रखा है स्पेशल।

माँ ने स्पर्धा की ओर मुखातिब होकर कहा-
“सुनो बेटा तुम्हें खाने में हरा धनिया पसंद नहीं, जीरे का छोंका अच्छा नहीं लगता, टमाटर दिख जाए तो तुम गुस्से में टमाटर से ज्यादा लाल हो जाती हो और तो और दाल में दाने दिखने नहीं चाहिए। बताओ इन सब के बिना कैसा खाना होगा?”

स्पर्धा समझ चुकी थी कि माँ ने उसे सबक सिखाने के लिए ये सब किया था। उसने माफी मांगते हुए कहा-
“सॉरी मम्मी आज के बाद कभी नखरे नहीं करुंगी।”

माँ ने फिर एक डोंगा उसके सामने खोला, इसमें सचमुच स्पर्धा-उत्तरा दोनों की पसंद के मलाई कोफ्ते थे।सभी जोर से हंस पड़े।

तारा पाठक
@कॉपी राइट

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