10 महान पौराणिक गुरु, युगों बाद भी मौजूद है जिनका अस्तित्व
सनातन परंपरा में प्राचीन काल से ही गुरुओं का सबसे ऊंचा स्थान रहा है। गुरु की महिमा माता-पिता और ईश्वर से ऊंची बताई गई है। वर्तमान में भारत में प्रत्येक वर्ष 5 सितंबर को भारत के पूर्व राष्ट्रपति और महान शिक्षाविद् डॉ सर्वपल्ली राधा कृष्णन के जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। राष्ट्रीय शिक्षक दिवस पर शिष्य अपने गुरुजनों के प्रति समर्पण भाव प्रकट करते हैं। आइए शिक्षक दिवस पर जानते है 10 पौराणिक गुरुओं ओर उनके प्रिय शिष्यों बारे में।
वेद व्यास
हिन्दू धार्मिक शास्त्रों में महर्षि वेदव्यास को प्रथम गुरु माना गया है। ऐसा माना जाता है कि महर्षि वेदव्यास स्वयं भगवान विष्णु के अवतार थे। इनका पूरा नाम कृष्णदै्पायन व्यास था। महर्षि वेदव्यास ने ही चार वेद, 18 पुराण और महाभारत महाकाव्य की रचना की थी। महर्षि के शिष्यों में ऋषि जैमिन, वैशम्पायन, मुनि सुमन्तु, रोमहर्षण आदि शामिल थे।
महर्षि वाल्मीकि
महर्षि वाल्मीकि ने रामायण ग्रंथ की रचना की थी। उन्हें कई प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों का जनक माना जाता मर्यादा पुरुषोत्तम राम के दोनों पुत्र लव-कुश महर्षि वाल्मीकि के शिष्य थे। उन्होंने जंगल में अपने उजाल माता सीता को शरण भी दी थी।
देवगुरु बृहस्पति
सनातन धर्म में देवगुरु बहस्पति का महत्वपूर्ण स्थान है। वे देवताओं के गुरु हैं। देवगुरु बृहस्पति रक्षोघ्र मंत्रों का प्रयोग कर देवताओं का पोषण व रक्षा करते हैं। दैत्यों से देवताओं की रक्षा करते हैं। युद्ध में जीत के लिए योद्धा इनकी प्रार्थना करते हैं।
गुरु द्रोणाचार्य
महाभारत काल में गुरु द्रोणाचार्य का वर्णन मिलता है। वे कौरवों व पांडवों के गुरु थे। हालांकि उनके प्रिय शिष्य में अर्जुन का नाम आता है। लेकिन, एकलव्य ने भी उन्हें अपना गुरु माना था। गुरु द्रोणाचार्य ने ही गुरु दक्षिणा के रूप में एकलव्य से उसका अंगूठा मांग लिया था।
गुरु विश्वामित्र
रामायण काल में गुरु विश्वामित्र का वर्णन मिलता है। वे भृगु ऋषि के वंशज थे। विश्वामित्र के शिष्यों में मर्यादा पुरुषोत्तम राम व लक्ष्मण थे। विश्वामित्र ने राम-लक्ष्मण को कई अस्त्र-शस्त्रों का पाठ पढ़ाया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार विश्वामित्र ने देवताओं से नाराज होकर उन्होंने एक अलग सृष्टि की रचना कर दी थी।
परशुराम
भगवान परशुराम जन्म से ब्राह्रमण लेकिन, स्वभाव से क्षत्रिय थे। उन्होंने अपने माता-पिता के अपमान का बदला लेने के लिए पृथ्वी पर मौजूद समस्त क्षत्रिय राजाओं का सर्वनाश करने का वचन लिया था। परशुराम के शिष्यों में भीष्म, द्रोणाचार्य व कर्ण जैसे योद्धा का नाम आता है।
दैत्यगुरु शुक्राचार्य
गुरु शुक्राचार्य राक्षसों के देवता माने जाते है। गुरु शुक्राचार्य को भगवान शिव ने मृत संजीवनी दिया था, जिससे मरने वाले दानव फिर से जीवित हो जाते थे। गुरु शुक्राचार्य ने दानवों के साथ देव पुत्रों को भी शिक्षा दी। देवगुरु बृहस्पति के पुत्र कच इनके शिष्य थे।
गुरु वशिष्ठ
सूर्यवंश के कुलगुरु वशिष्ठ थे, जिन्होंने राजा दशरथ को पुत्रेष्टि यज्ञ करने के लिए कहा था जिससे मर्यादा पुरुषोत्तम राम, लक्ष्मण, भरत और शुत्रुघ्न का जन्म हुआ था। इन चारों भाईयों ने इन्हीं से शिक्षा-दीक्षा ली थी। गुरु वशिष्ठ की गिनती सप्तऋषियों में भी होती है।
गुरु कृपाचार्य
गुरु कृपाचार्य कौरवों व पांडवों के गुरु थे। कृपाचार्य को चिरंजीवी होने का वरदान भी प्राप्त था। राजा परीक्षित को भी इन्होंने अस्त्र विद्या का पाठ पढ़ाया था। कृपाचार्य अपने पिता की तरह धनुर्विद्या में निपुण थे।
आदिगुरु शंकराचार्य
आदिगुरु शंकराचार्य ने सनातन धर्म के चार पवित्र धामों (बद्रीनाथ, रामेश्वरम्, द्वारिका, जगन्नाथ पुरी) की स्थापना की थी। इनका जन्म केरल राज्य के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। कहते हैं मात्र 7 साल की उम्र में इन्होंने वेदों का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। सनातन धर्म में मान्यता है कि आदि शंकराचार्य भगवान शंकर के ही अवतार थे।