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रानीखेत में पहली बार दिखी उडऩे वाली गिलहरी, देश में उड़ान भरने वाली 12 ही प्रजातियां बची हैं

रानीखेेत: पर्यावरण, वन्यजीव एवं प्रकृतिप्रेमियों के लिए सुखद खबर है। देवलसारी रेंज (टिहरी) के बाद अब पर्यटन नगरी रानीखेत के जंगलात में दुर्लभ किस्म की उडऩ गिलहरी (फ्लाइंग स्क्वैरल) दिखी है। पर्यावरण विशेषज्ञ इसे जैवविविधता के लिए शुभ संकेत बता रहे। तो उत्साहित वन विभाग इस विलक्षण प्रजाति, वासस्थल को चिह्नित कर संरक्षण की योजना बनाने जा रहा। पर्वतीय वादियों में उडऩ गिलहरी की कितनी प्रजातियां रह गई हैं, इस पर बाकायदा शोध की भी तैयारी है।

मेहमान व मेजबान परिंदों से गुलजार बर्ड वॉचिंग के लिए मुफीद रानीखेत के मिश्रित वन क्षेत्र उडऩे वाली गिलहारी को भी रास आने लगे हैं! नगर व आसपास के जंगलात में उड़ान भरती दुर्लभ गिलहरी की मौजूदगी कुछ यही संकेत दे रही। समुद्रतल से 1824 मीटर की ऊंचाई पर चिलियानौला रोड व ठंडी सड़क से लगे बांज, काफल, देवदार व चीड़ के मिश्रित सघन जंगलात में फ्लाइंग स्क्वैरल (पेटौरिस्टाइनी) वन्यजीव प्रेमियों के लिए अजूबा बनी है। वन विभाग के विशेषज्ञ कहते हैं, उडऩ गिलहरी बिल्कुल विलुप्त तो नहीं लेकिन विलुप्ति की कगार पर है। उन्होंने इसे जैवविविधता के लिहाज से बेहद सुखद बताया। डीएफओ कुबेर सिंह बिष्ट ने कहा, पूरे भारत में उडऩे वाली गिलहरियों की 12 प्रजातियां हैं। रानीखेत व कुमाऊं में कितनी हैं, इस पर शोध की जस्रत है

ऐसे कैद हुई कैमरे में 
हालिया नेचर फोटाग्राफर कमल गोस्वामी के साथ जागरण टीम ने देर रात नगर के समीपवर्ती चलियानौला रोड व ठंडी सड़क पर एकाएक उड़ान भरता जीव देखा। अचरज के बीच उसके बारे में जानने की जिज्ञासा दूनी हो गई। बीती सोमवार देर रात दोनों स्थानों का दोबारा जायजा लेने पर रहस्यमय जीव का दीदार फिर हुआ। एक क्लिक पर यह जीव बेहद फुर्ती के साथ उड़ चला। दूर आंखें चमकीं तो सधे हुए कदमों से करीब पहुंचे तो जमीन पर बैठा यह जीव बड़ी तेजी से चीड़ के पेड़ पर चढ़ा। फिर बाजुओं से पैर तक छत्रीनुमा खाल को फैला कर हवा में उड़ता हुआ 10-15 मीटर की दूर पेड़ से जा चिपका। उडऩे की गति इतनी तेज कि कैमरे में कैद न किया जा सका। हालांकि जमीन पर बैठे, उड़ान की तैयारी व दूसरे पेड़ पर मजबूत पकड़ के साथ कैमरे में कैद कर लिए गए।

… और आखिर में हो गई शिनाख्त 
सुप्रसिद्ध नेचर फोटोग्राफर, स्टेट वाइल्ड लाइफ एडवाइजरी कमेटी सदस्य पद्मश्री अनूप साह ने इसकी पहचान उडऩे वाली गिलहरी के रूप में की। उन्होंने नैनीताल के बाज बहुल जंगलात में भी इसकी मौजूदगी का दावा किया।

तीन वर्ष पूर्व टिहरी में दिखी थी 
वर्ष 2016 में समुद्रतल से 6500 फीट की ऊंचाई पर स्थित देवलसारी रेंज (टिहरी) में पहली बार दिखी थी उडऩ गिलहरी।

उड़ती नहीं, शानदार छलांग लगाती है 
उडऩ गिलहरी उड़ान नहीं भरती बल्कि शानदार छलांग लगाती है, जो बहुत रोमांचित करती है। उसके शरीर में दाएं बाएं बाजुओं से पिछले दोनों पैरों तक पर्देदार लचीली त्वचा होती है। ऊंचे स्थान से छलांग लगाने पर यह त्वचा छाता की तरह फैल जाती है और पैराग्लाइडर की तरह यह दुर्लभ गिलहरी काफी दूरी तक उड़ान भरती है। खास बात कि छत्रीनुमा त्वचा की मदद से वह काफी देर तक हवा में खुद को रोक सुरक्षित स्थान का मुआयना कर लेती है।

दो गिलहरी मेरे घर पर पली हैं
पद्मश्री अनूप साह, सदस्य स्टेट वाइल्ड लाइफ एडवाइजरी कमेटी उत्तराखंड ने बताया कि नैनीताल में उडऩ गिलहरी के दो बच्चे मेरे घर पर पले। बेहद मित्रवत हो जाती हैं। बड़ी होने पर उन्हें जंगल में छोड़ दिया। कत्थई रंग की फ्लाइंग स्क्वैरल तो कॉमन हैं, पर ग्रे कलर की दुर्लभ हो गई है। रानीखेत में जंगलों में इनका दिखाई देना वाकई सुखद है।

डीएफओ ने कहा यह शोध का विषय है
कुबेर सिंह बिष्ट, डीएफओ अल्मोड़ा ने बताया कि यह अद्भुत है। उडऩे वाली गिलहरी विलुप्ति की कगार पर है। यमुनोत्री में मैंने काफी पहले देखी थी। रानीखेत में जिस जगह यह देखी गई, उसे चिह्नित कर पता लगाएंगे कि इनकी संख्या कितनी है। यह शोध का विषय भी है। इन्हें संरक्षित करेंगे। उस स्थान को वनाग्नि व शिकार से बचाया जाएगा।

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