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हिंदी प्रेमी स्व. पूरन चंद जी को कवि जीके पिपिल की काव्यमयी श्रद्धांजलि

कुछ और ठहर अभी रुखसत ना हो
रुसवा हमारी अधूरी मोहब्बत ना हो
तेरे होने से होती रहीं हैं बज़्में जवान
जग जानता है भले तू अवगत ना हो

12/11/2024

हर ख़ौफ़ की ख़तरे की हिफाज़त चली गई
मोहब्बत की भाई-चारे की वो लत चली गई
भाई पूरन चंद जी का देहावसान तो ऐसा है
जैसे काव्य तो रहा उसकी ज़ीनत चली गई

13/11/2024

ना किसी का ना किसी से कोई कुछ लेकर गया है
हर जाने वाला सब को कुछ ना कुछ देकर गया है

15/11/2024

यादें उसकी जाती ही नहीं किसी नशे की लत की तरह
लोग चाहते थे उसको मोहब्बत के पहले ख़त की तरह
वजूद उसके चाहने वालों का आज़कल कुछ ऐसे ही है
जैसे एक फूल है बिना खुशबू और बिना रंगत की तरह

20/11/2024

सब देखना चाहते थे उसे आखरी मुलाक़ात की तरह
अश्क आंखों से गिर रहे थे बेमौसम बरसात की तरह
उस दिन वो एक बार फिर दूल्हा ही बन गया था जैसे
मैय्यत भी निकली थी उसकी किसी बारात की तरह

22/11/2024

भंवर कितने ही गहरे होते कितने भी तेज़ धारे होते
भले ही ना नाखुदा होता और ना उसके सहारे होते
अगर जो रहीं होती हम पर ख़ुदा की नज़रें इनायत
तो हमको बचाने के लिए दौड़ के आए किनारे होते

23/11/2024

जीके पिपिल
देहरादून।

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