पूरन चंद जी आप हमेशा याद आयेंगे …
निस्वार्थ भाव से हिंदी की सेवा में तल्लीन रहने वाले और सेवा सेतु राष्ट्रीय न्यास के संस्थापक आदरणीय पूरन चंद जी हमारे बीच अब नहीं रहे, उनके स्वर्गवासी होने के चार दिन बाद भी यह यकीन नहीं हो रहा है। उनका जाना साहित्य जगत के लिए तो क्षति है ही, मेरे लिए व्यक्तिगत तौर पर भी अपूरणीय क्षति है। उनके अचानक स्वर्गवासी होने से मन इतना व्यथित है कि मैं उनके जाने पर चार दिन से कुछ लिख ही नहीं पाया 😭।
आदरणीय पूरन चंद जी से मेरा संबंध लगभग दो दशक से भी पुराना था। उनसे पहली मुलाकात के बाद से उनके अंतिम समय तक उनका स्नेह और सानिध्य बना रहा। छोटी दीपावली के दिन उनके घर पर ही मुलाकात हुई थी। शनिवार 9 नवंबर को सेवा सेतु की मासिक काव्य गोष्ठी तय थी और उसी दिन मुझे पंतनगर में कार्यक्रम में शामिल होना था, इसलिए उनसे क्षमा मांग ली थी, मैं इस बार गोष्ठी में शामिल नहीं हो पाऊंगा। पंतनगर से आकर साथ चाय पिएंगे। लेकिन, यह संभव नहीं हो पाया। 10 नवंबर को पंतनगर से लौटा ही था कि 11 नवंबर सुबह सूचना मिली कि पूरण चंद जी आईसीयू में भर्ती हैं और दूसरे दिन उनके स्वर्गवासी होने की सूचना। तब से मन व्यथित है एक मित्र (हालांकि वह उम्र में बहुत सीनियर थे, लेकिन, उन्होंने मित्रवत संबंध रखा), बड़े भाई और शुभ चिंतक के चले चले से…।
पूरन चंद जी ओएनजीसी से उप महाप्रबंधक राजभाषा के पद से सेवानिवृत्त थे। हिंदी के प्रति उनका इतना समर्पण था कि देश में हिंदी को लेकर जब आंदोलन हुआ, दो धड़े बन गए पक्ष और विपक्ष में, उस वक्त वह हिंदी का झंडा बुलंद किए रहे, इसके लिए वह जेल भी गए। बाद के दिनों में हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिला। उनकी नियुक्ति राजभाषा अधिकारी के रूप में ओएनजीसी में हुई। उनका हिंदी को लेकर प्रेम इस चरम तक था कि कवि/लेखक न होने होने के बावजूद प्रत्येक महीने हिंदी को लेकर गोष्ठी का आयोजन अपने घर में करते थे। उत्तराखंड, गुजरात से लेकर कई राज्यों में वह सेवा के दौरान रहे, सभी जगह हिंदी के बड़े आयोजनों के साथ ही घर पर भी उनके आयोजन जारी रहे। वर्ष 2004-05 में मुझे भी उनके घर पर होने वाली गोष्ठी के लिए आमंत्रण मिला था। उनके किशनगनगर चौक स्थित आवास पर तब गोष्ठियां हुआ करती थी। उसके बाद जब वह सेवानिवृत्त हुए तो सेवा सेतु राष्ट्रीय न्यास की स्थापना हुई ताकि हिंदी के आयोजन निरंतर जारी रखे जा सकें। न्यास के माध्यम से नियमित मासिक काव्य गोष्ठी लोनिया मोहल्ले स्थित कार्यालय में होने लगी। इसके साथ ही कई बड़े आयोजन भी हुए। उनके यह आयोजन अंत समय तक जारी रहे। 12 नवंबर को वह स्वर्गवासी हुए और 9 नवंबर को उन्होंने गोष्ठी आयोजित की थी।
मेरे प्रति उनका स्नेह इतना अधिक था कि कुछ दिन तक यदि मुलाकात नहीं हुई तो उनकी कॉल आ जाती थी, हां जी डंगवाल जी मैंने थाने में रिपोर्ट लिखवा दी कि आपको ढूंढा जाय कहां हैं … जल्द मिलो नहीं तो मैं धरने पर बैठ जाऊंगा। मेरे बेटे से भी बड़ा स्नेह रहता था, जब भी गोष्ठी के आमंत्रण के लिए कॉल करते तो कहते डंगवाल जी गोष्ठी में जरूर आना है और छोटे राष्ट्र कवि को भी साथ लाना है … मैं बिना ठहाके लगाए नहीं रह पाता। तभी वह कहते यदि नहीं लाए तो जुर्माना पड़ेगा, देख लेना। वहीं, दीपावली पर उनकी डोडा बर्फी हमेशा तैयार रहती…। वह मुझसे ही नहीं सभी से स्नेह रखते थे। गोष्ठी के लिए कई बार तो खुद ही पकवान बनाने में जुट जाते। कॉल आती हां जी डंगवाल जी परसों गोष्ठी है, जरूर आना है, इस बार मैं खुद गुलाब जामुन बना रहा हूं अपने हाथों से, गुलाब जामुन बर्बाद हुए तो आपको जुर्माना पड़ेगा.. ऐसे न जाने कितने ही किस्से और यादें जुड़ी हैं उनसे।
उन्होंने मुझे असीम स्नेह, मान-सम्मान दिया और दिलवाया। मैं उनका आजीवन आभारी रहूंगा। अब वह हमारे बीच नहीं हैं। मन उदास है, व्यथित है। वह हमेशा प्रेरणास्रोत के रूप में, मित्र के रूप में, भाई के रूप में, शुभ चिंतक के रूप में मेरे हृदय में रहेंगे। मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि पुण्यात्मा को अपने श्री चरणों में स्थान देंगे।
वीरेंद्र डंगवाल “पार्थ”
कवि/गीतकार/पत्रकार