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धामी ने ठानी: उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता का सपना होगा साकार

-समान नागरिक संहिता का मुद्दा भाजपा वर्ष 1989, 2014, 2019 के चुनाव घोषणा पत्र में लाई थी। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी राज्य में समान नागरिक संहिता लागू करवाने की ओर अग्रसर हैं। उन्होंने कैबिनेट से भी इसके लिए प्रस्ताव पास करवा लिया है।

भारतीय जनता पार्टी देश में समान नागरिक संहिता की जो कवायद चला रही है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी उसे पूरा करवाने की ओर अग्रसर हैं। फिलवक्त गोवा को छोड़कर देश के किसी भी राज्य या केंद्र के स्तर से समान नागरिक संहिता अभी लागू नहीं हो पाई है। भारत में गोवा का विलय होने से पहले से वहां पुर्तगाल सिविल कोड 1867 लागू है। पिछले साल जुलाई में दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र से कहा था कि समान नागरिक संहिता जरूरी है।

समान नागरिक संहिता

समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड सभी धर्मों के लिए एक ही कानून है। अभी तक मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदाय के लोगों का अपना अलग कानून है, जिसके हिसाब से व्यक्तिगत मामले जैसे शादी, तलाक आदि पर निर्णय होते हैं। समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद सभी नागरिकों के लिए एक ही कानून होगा।

भाजपा ने उठाया मुद्दा

समान नागरिक संहिता का मुद्दा हमेशा भाजपा के एजेंडे में रहा है। 1989 के आम चुनाव में पहली बार भाजपा ने अपने घोषणापत्र में समान नागरिक संहिता का मुद्दा शामिल किया। इसके बाद 2014 के आम चुनाव और 2019 के चुनाव में भी भाजपा ने घोषणा पत्र में जगह दी।

मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदाय का पर्सनल लॉ

वर्तमान में मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदाय के लोगों से जुड़े मामलों को पर्सनल लॉ के माध्यम से सुलझाया जाता है। जबकि जैन, बौद्ध, सिख और हिंदू, सिविल लॉ के तहत आते हैं।

इन देशों में लागू है समान नागरिक संहिता

तुर्की, सूडान, इंडोनेशिया, मलेशिया, बांग्लादेश, इजिप्ट और पाकिस्तान।

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