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उत्तराखंड: देवस्थानम बोर्ड भंग, अब भू-कानून की बारी

-उत्तराखंड में विभिन्न सामाजिक व राजनैतिक संगठन सशक्त भू-कानून की मांग कर रहे हैं। मांग को लेकर संगठनों से जुड़े लोग आंदोलित हैं। सरकार ने जिस तरह देवस्थानम बोर्ड भंग किया है, ऐसे में लोगों को उम्मीद है कि भू कानून को लेकर भी धामी अच्छा निर्णय लेंगे।

शब्द रथ न्यूज, ब्यूरो (shabd rath news)। उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम बोर्ड भंग होने के बाद प्रदेशवासियों को सशक्त भू-कानून को लेकर भी उम्मीद जगी है। प्रदेश वासियों को उम्मीद है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जिस तरह जन भावनाओं को समझते हुए देवस्थानम बोर्ड भंग किया। अब वह भू कानून को लेकर भी ठोस निर्णय लेंगे। इसको लेकर सबकी निगाहें सरकार पर टिकी हुई हैं।

गौरतलब है कि मुख्यमंत्री धामी ने भू-कानून को लेकर पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में जो कमेटी गठित की है। उसकी सात दिसंबर को देहरादून में बैठक है। समिति की सब ताज 163 सुझाव मिल चुके हैं। बैठक में इन पर 163 विमर्श होगा। इस दौरान जन सुनवाई के बाद समिति अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप देगी।

भू-कानून की मांग को लेकर लोग आंदोलित हैं। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने भी भू-कानून को चुनावी मुद्दा बनाया। आम आदमी पार्टी से लेकर उत्तराखंड क्रांति दल समेत अन्य सामाजिक संगठन भी सरकार से भू-कानून की मांग कर रहे हैं। मांग को देखते हुए मुख्यमंत्री धामी ने पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में कमेटी बनाई थी। पूर्व आईएएस अधिकारी डीएस गर्ब्याल, अरुण कुमार ढौंडियाल व भाजपा नेता अजेंद्र अजेय इसमें सदस्य हैं।

कमेटी की ओर से लोगों से सार्वजनिक सूचना के माध्यम से सुझाव मांगे गए थे। कमेटी को अब तक 163 सुझाव मिल चुके हैं। अब इन सुझावों पर विमर्श के बाद जन सुनवाई होगी। कमेटी को जो सुझाव मिले हैं, उनमें अधिकतर लोगों ने हिमाचल की तर्ज पर भू-कानून बनाने की मांग की है। कमेटी को दिल्ली और हिमाचल से भी अप्रवासी उत्तराखंडियों के सुझाव मिले हैं। वर्तमान भू-कानून का विरोध करने वालों का कहना है कि प्रदेश में ‘उत्तर-प्रदेश जमींदारी उन्मूलन व भूमि व्यवस्था सुधार अधिनियम 1950 संशोधन कानून 2018 को जमीन की खरीद फरोख्त के नियमों को लचीला बनाया गया है। कोई भी पूंजीपति प्रदेश में कितनी भी जमीन खरीद सकता है। यह अनुचित है।

वर्तमान भू कानून के तहत पहाड़ में उद्योग लगाने के लिए भूमिधर स्वयं भूमि बेचे या उससे कोई भूमि खरीदे तो भूमि को अकृषि कराने के लिए अलग से प्रक्रिया नहीं अपनानी होगी। औद्योगिक प्रायोजन से भूमि खरीदने पर भूमि का भू-उपयोग खुद ही बदल जाएगा। अधिनियम की धारा 154 (4) (3) (क) की उपधारा (2) जोड़ी गई। इसके तहत 12.5 एकड़ भूमि की बाध्यता व किसान होने की अनिवार्यता भी खत्म की गई है।

कमेटी की सात दिसंबर को बैठक है। जिन्होंने अपने सुझाव के साथ अपना पक्ष रखने को कहा है, उनकी सुनवाई भी होगी। कमेटी ने आपत्ति व सुझाव मांगे थे, जो मिल चुके हैं। आपत्तियां सुनने के बाद रिपोर्ट फाइनल होगी।

– सुभाष कुमार, अध्यक्ष, भू-कानून अध्ययन समिति

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