अमर शहीद जसवंत सिंह रावत को दी श्रद्धांजलि, परमवीर चक्र देने की मांग, रक्षामंत्री को भेजा पत्र
-जसवंत सिंह ने 1962 की भारत चीन की लड़ाई में लिया था मोर्चा, अदम्य साहस का परिचय देते हुए 72 घंटे तक अकेले 300 चीनी सैनिकों के साथ मोर्चाबंदी कर खट्टे किए थे दुश्मनों के दांत
देहरादून (dehradun)। उत्तराखंड नवनिर्माण सेना uttrakhand nav Norman sena (उनसे) की ओर से अमर शहीद जसवंत सिंह रावत (Shahid jasvant Singh rawat) के बलिदान दिवस पर श्रद्धांजलि (tribute) अर्पित की गई। साथ ही उन्हें परमवीर चक्र (paramveer chakra) प्रदान करने की मांग को लेकर रक्षा मंत्री (difence minister) राजनाथ सिंह (rajnath Singh) को पत्र प्रेषित (send the letter) किया गया।
नवनिर्माण सेना के संस्थापक सदस्य व प्रदेश महामंत्री सुशील कुमार state secretary Sushil Kumar) ने कहा कि उत्तराखंड वीरों की धरती है। देवों की भूमि उत्तराखंड के कई रणबांकुरों ने देश की एकता व अखंडता की रक्षा के लिए प्राणों का सर्वोच्च बलिदान दिया है। उनकी शौर्य गाथा राज्य के हर व्यक्ति के शीश को गर्व से ऊंचा करती है। ऐसे ही एक गढ़वाली योद्धा थे ‘शहीद जसवंत सिंह’, जिन्होंने अदम्य साहस का परिचय देते हुए 72 घंटे तक अकेले 300 चीनी सैनिकों के साथ मोर्चाबंदी कर दुश्मनों के दांत खट्टे किये थे। सुशील कुमार ने कहा कि अदम्य साहस व देश की रक्षा के प्रति प्रतिबद्धता दिखाने के बावजूद जसवंत सिंह जैसे योद्धा को आज तक परमवीर चक्र से क्यों नहीं दिया गया, यह आज भी प्रश्न है। सेना मांग करती है कि जसवंत सिंह को परमवीर चक्र दिया जाय।
तीन दिन तक लगातार अकेले लड़ते रहे
जब चीनी सेना तवांग से आगे निकलते हुए नूरानांग पहुंच गई। इसी दिन नूरानांग में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच लड़ाई शुरू हुई।परमवीर चक्र विजेता जोगिंदर सिंह, लांस नायक त्रिलोकी सिंह नेगी और राइफलमैन गोपाल सिंह गुसाईं सहित सैकड़ों सैनिक वीरगति को प्राप्त हो चुके थे। गढ़वाल राइफल के चतुर्थ बटालियन में तैनात जसवंत सिंह रावत ने अकेले नूरानांग का मोर्चा संभाला। लगातार तीन दिनों तक वह विभिन्न बंकरों में जाकर गोलीबारी करते रहे और उन्होंने अपनी लड़ाई जारी रखी।
शहीद होने के बाद भी दी जाती रही पदोन्नति
राइफ़ल मैन जसवंत सिंह भारतीय सेना के सिपाही थे। 1962 में नूरानांग की लड़ाई में असाधारण वीरता दिखाते हुए शहीद हुए। उन्हें बहादुरी के लिए मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था। जसवंत सिंह की वीरता ही थी कि भारत सरकार ने उनकी शहादत के बाद भी सेवानिवृत्ति की उम्र तक उन्हें उसी प्रकार से पदोन्नति दी, जैसा उन्हें जीवित होने पर दी जाती।
भारतीय सेना में यह मिसाल है कि शहीद होने के बाद भी उन्हें समयवार पदोन्नति दी जाती रही। जसवंत सिंह की इस शहादत को संजोए रखने के लिए 19 गढ़वाल राइफल ने युद्ध स्मारक बनवाया। स्मारक के एक छोर पर एक जसवंत मंदिर भी बनाया गया।