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उत्तराखंड में शिवालय… जहां मिलता है काशी विश्वनाथ के दर्शनों के बराबर पुण्य

-मान्यता है कि उत्तरकाशी के काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शनों का फल वाराणसी के काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शनों के बराबर है। काशी विश्वनाथ का ये मंदिर सालभर भक्तों के लिए खुला रहता है। गंगोत्री जाने से पहले बाबा विश्वनाथ के दर्शन जरूरी माने जाते हैं।

उत्तराखंड में ऐसा शिवालय है, जहां कहा जाता है कि इसके दर्शन से वाराणसी के काशी विश्वनाथ के बराबर सुख/पुण्य मिलता है। भारत में यूं तो तीन काशी प्रसिद्ध हैं। एक काशी वाराणसी है तो दो काशी उत्तराखंड में हैं। पहला उत्तरकाशी और दूसरा गुप्तकाशी।

मान्यता है कि भगवान भोलेनाथ यहां काशी विश्वनाथ के रूप में विराजमान हैं। उत्तरकाशी शहर मां भागीरथी के तट पर स्थित है। नगर के बीचों-बीच महादेव का भव्य मंदिर है। मान्यता है कि उत्तरकाशी के काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शनों का फल वाराणसी के काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शनों के बराबर है। काशी विश्वनाथ का ये मंदिर सालभर भक्तों के लिए खुला रहता है। गंगोत्री जाने से पहले बाबा विश्वनाथ के दर्शन जरूरी माने जाते हैं।

भागीरथ ने उत्तरकाशी में की थी तपस्या 

मंदिर के ठीक सामने मां पार्वती त्रिशूल रूप में विराजमान हैं। कहा जाता है कि राक्षस महिषासुर का वध करने के बाद मां दुर्गा ने अपना त्रिशूल धरती पर फेंका था। ये त्रिशूल यहीं आकर गिरा। तब से इस स्थान पर मां दुर्गा की शक्ति स्तम्भ के रूप में पूजा की जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा भागीरथ ने उत्तरकाशी में ही तपस्या की थी, उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें वरदान दिया था कि भगवान शिव धरती पर आ रही गंगा के वेग को धारण कर लेंगे।

पवित्रता भंग होने का मिला था श्राप 

कहा जाता है कि किसी समय में वाराणसी (काशी) को कलयुग में यवनों के संताप से पवित्रता भंग होने का श्राप मिला था। इस श्राप से व्याकुल होकर देवताओं और ऋषि-मुनियों द्वारा शिव उपासना का स्थान भगवान शंकर से पूछा तो उन्होने बताया कि काशी सहित सब तीर्थों के साथ वह हिमालय पर निवास करेंगे। इसी आधार पर वरुणावत पर्वत पर असी और भागीरथी संगम पर देवताओं द्वारा उत्तर की काशी यानि उत्तरकाशी बसाई गई। यही कारण है कि उत्तरकाशी में वे सभी मंदिर व घाट स्थित हैं, जो वाराणसी में है। इनमें विश्वनाथ मंदिर, अन्नपूर्णा मंदिर, भैरव मंदिर समेत मणिकर्णिका घाट व केदारघाट आदि शामिल हैं।

उत्तरकाशी को पुराणों में इसे ‘सौम्य काशी’ भी कहा गया

उत्तरकाशी को प्राचीन समय में विश्वनाथ की नगरी कहा जाता था। केदारखंड और पुराणों में उत्तरकाशी के लिए ‘बाडाहाट’ शब्द का प्रयोग मिलता है। केदारखंड में ही बाडाहाट में विश्वनाथ मंदिर का उल्लेख है। पुराणों में इसे ‘सौम्य काशी’ भी कहा गया है। मंदिर उत्तरकाशी के बस स्‍टैण्‍ड से 300 मीटर की दूरी पर स्थित है। कहा जाता है कि इस मंदिर की स्‍थापना परशुराम जी ने की थी। महारानी कांति ने 1857 ई. में इस मंदिर की मरम्‍मत करवाई। महारानी कांति सुदर्शन शाह की पत्‍नी थीं। उत्तरकाशी के विश्वनाथ मंदिर में महा शिवरात्रि के अवसर पर कई धार्मिक आयोजन होते हैं। महोत्सव की तैयारियों बहुत पहले से ही शुरू हो जाती हैं। झांकियां निकलने के साथ ही कई तरह के धार्मिक अनुष्ठान भी होते हैं।  देश-विदेश से कई श्रद्धालु इस दिन मंदिन में आकर दर्शन कर पूर्जा-अर्चना करते हैं।

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