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‘वाह रे बचपन‘ कभी न खत्म होने वाली एक श्रृंखला

दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र की ओर से ‘वाह रे बचपन‘ पुस्तक श्रृंखला पर बातचीत का कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस पुस्तक श्रृंखला के संपादक जनकवि डॉ अतुल शर्मा हैं। लैंसडाउन चौक स्थित दून पुस्तकालय के सभागार में लेखक मुकेश नौटियाल ने डॉ अतुल शर्मा से बातचीत की।

डॉ शर्मा ने वाह रे बचपन श्रृंखला के बारे में बताया कि अब तक इसके सात अंक प्रकाशित हो चुके हैं, जिसमें 80 से अधिक लेखकों ने अपने बचपन के रोचक संस्मरण लिखे हैं। इसका आंठवा अंक जल्द ही प्रकाशित हो रहा है। कहानीकार रेखा शर्मा व कवयित्री रंजना शर्मा ने वाह रे बचपन के विभिन्न अंको से संस्मरणों के अंश भी पढे़, जिसे लोगों ने पसंद भी किया।

कार्यक्रम में उपस्थित लोगों का स्वागत करते हुए प्रोग्राम एसोसिएट चन्द्रशेखर तिवारी ने कहा कि दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र की ओर से समय-समय पर आयोजित किये जाने कार्यक्रमों के तहत ‘वाह रे बचपन‘ पुस्तक श्रृंखला पर बातचीत का कार्यक्रम रखा गया है। बचपन की यादों को संस्मरण के रूप में प्रस्तुत करने का इसे अभिनव प्रयोग बताते हुए कहा कि इस पुस्तक श्रृंखला को कई लोगों ने सराहा है। उन्होंने लेखक का संक्षिप्त साहित्यिक परिचय भी दिया।

लेखक मुकेश नौटियाल के प्रश्न पर कि अब तक आप कितने लोगों के बचपन के संस्मरण छाप चुके हैं? डॉ शर्मा ने बताया कि इनमें कवि, लेखक और सामान्य पाठक समान रूप से शामिल हैं। खासकर इनमें लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी, साहित्यकार डॉ गंगा प्रसाद विमल, रंगकर्मी व व्यंग्यकार उर्मिल थपलियाल, संस्कृति कर्मी डॉ डीआर पुरोहित, लेखक महेश दर्पण, पत्रकार राजीव लोचन साह, कहानीकार रेखा शर्मा, कवयित्री रंजना शर्मा, डॉ महेश कुड़ियाल, डॉ जयंत नवानी, फोटोग्राफर कमल जोशी, पद्मश्री डॉ अनिल प्रकाश जोशी, पूर्व प्रेस क्लब अध्यक्ष जितेंद्र अंथवाल, लेखक नन्दकिशोर हटवाल, समाजसेवी रविन्द्र जुगरान, दूरदर्शन के ओमप्रकाश जमलोकी, प्रतिष्ठित कवि यश मालवीय, चित्रकार जगमोहन बंगाणी, संपादिका गंगा असनोड़ा, डॉ सुशील उपाध्याय, कवि हेमंत बिष्ट, चिपको नेत्री विमला बहुगुणा, कौसानी आश्रम की राधा भट्ट, दून विश्व विद्यालय की कुलपति सुरेखा डंगवाल, पूर्व पुलिस महानिदेशक अनिल रतूड़ी, कवि/पत्रकार वीरेन्द्र डंगवाल “पार्थ”, लेखिका सुमित्रा धूलिया सहित बहुत से अन्य लोगों के बचपन के रोचक संस्मरण शामिल हैं।

वाह रे बचपन का पहला अंक 2013 मे प्रकाशित हुआ था। सातवां अंक 2023 मे प्रकाशित हुआ है इसमें सभी लोगों ने अपने मासूम और खुशहाल बचपन को लिखकर याद किया हैं। पत्रकार संपादक राजीव लोचन साह ने बचपन के उन खेलों को याद किया है जो अब लुप्त हो गये हैं, जिनका विकास में बहुत रचनात्मक योगदान रहता था। डॉ महेश कुड़ियाल ने लिखा है कि उत्तरकाशी में उनका बचपन बीता, तब वे बहुत शरारती थे। वह नौ बार छत से गिरे थे, लोग मजाक मे कहते थे कि डॉक्टर बनने के लिए छत से गिरना क्या जरुरी होता है? वहीं, कमल जोशी और डॉ अनिल प्रकाश जोशी ने कोटद्वार की रामलीला में बंदर का किरदार अदा करने के लिए घरवालों से चोरी छिपे किये कारनामों की रोचक दास्तान दी है। उर्मिल कुमार थपलियाल ने देहरादून के उस दौर का जिक्र किया है जब वे रामलीला में सीता के अभिनय के लिए जाने जाते थे। रेखा शर्मा व रंजना शर्मा ने सन् 50 के देहरादून का रोचक जिक्र किया है। उपस्थित लोगों ने डॉ अतुल शर्मा से वाह रे बचपन पुस्तक से जुड़े कई सवाल-जबाब भी किये।

मुकेश नौटियाल ने पुस्तक श्रृखला के लेखन में क्या चुनौतियां सामने आई और समाज में बाल साहित्य को लेकर क्या स्थिति है, इन पर भी सवाल रखे। इन तमाम सवालों का जवाब देते हुए डॉ शर्मा ने कहा कि बचपन का प्रभाव जीवन भर साथ रहता है, उस पर समय की पर्तें जम जाती हैं और इन्हीं पर्तों को हटाने का कार्य इस पुस्तक श्रृंखला वाह रे बचपन ने किया है। एक अन्य सवाल के उत्तर में डॉ शर्मा ने बताया कि इन अंकों में प्रकाशित संस्मरणों में तत्कालीन समय विशेष की सामाजिक स्थितियां भी सामने आयीं हैं। इस महत्वपूर्ण पुस्तक की बातचीत में शहर के अनेक साहित्यकार, लेखक, रंगकर्मी, समाजसेवी, दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र में कार्यरत लोग, युवा पाठक सहित बड़ी संख्या में लोग उपस्थित रहे।

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