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तालिबान आख़िर हैं कौन? कब हुई थी इसकी शुरूआत

अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी नेतृत्व वाली सेना ने तालिबान को साल 2001 में सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया था. लेकिन धीरे-धीरे ये समूह खुद को मज़बूत करता गया. अब एक बार फिर से इसने पूरे अफ़गानिस्तान पर क़ब्ज़ा कर लिया है. क़रीब दो दशक बाद, अमेरिका 11 सितंबर, 2021 तक अफ़ग़ानिस्तान से अपने सभी सैनिकों को हटाने की तैयारी कर रहा है.

तालिबान आंदोलन जिसे तालिबान या तालेबान के नाम से भी जाना जाता है। यह एक सुन्नी इस्लामिक आधारवादी संगठन है, जिसकी शुरूआत 1994 में दक्षिणी अफ़ग़ानिस्तान में हुई थी। तालिबान पश्तो भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है ज्ञानार्थी यानी ऐसे छात्र जो इस्लामिक कट्टरपंथ की विचारधारा पर यकीन करते हैं।

पश्तो जुबान में छात्रों को तालिबान कहा जाता है। नब्बे के दशक की शुरूआत में जब सोवियत संघ अफ़ग़ानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुला रहा था, उसी दौर में तालिबान का उदय हुआ। माना जाता है कि पश्तो आंदोलन पहले धार्मिक मदरसों में उभरा, इसके लिए सऊदी अरब ने फंडिंग की। इस आंदोलन में मुख्य रूप से सुन्नी इस्लाम की कट्टर मान्यताओं का प्रचार किया जाता था।

तालिबानी अपने उभार के बाद अफ़ग़ानिस्तान व पाकिस्तान के बीच फैले पश्तून इलाक़े में शांति/सुरक्षा की स्थापना के साथ ही शरिया क़ानून के कट्टरपंथी संस्करण को लागू करने का वादा करने लगे। इस दौरान दक्षिण पश्चिम अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान का प्रभाव तेजी से बढ़ा। सितंबर1995 में उहोंने ईरान की सीमा से लगे हेरात प्रांत पर कब्ज़ा कर लिया। इसके ठीक एक साल बाद तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी क़ाबुल पर कब्ज़ा जमा लिया।

बुरहानुद्दीन रब्बानी को सत्ता से हटाया

तालिबान ने उस वक्त अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति बुरहानुद्दीन रब्बानी को सत्ता से हटाया रब्बानी सोवियत सैनिकों के अतिक्रमण का विरोध करने वाले अफ़ग़ान मुजाहिदीन के संस्थापक सदस्यों में थे। वर्ष 1998 आते-आते लगभग 90 प्रतिशत अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान का नियंत्रण हो गया था।

शुरुआत में लोकप्रिय हुए तालिबानी 

दरअसल, सोवियत सैनिकों के जाने के बाद अफ़ग़ानिस्तान के लोग मुजाहिदीन की ज्यादतियों और आपसी संघर्ष से ऊब गए थे, इसलिए उन्होंने शुरूआत में तालिबान का स्वागत किया। भ्रष्टाचार पर अंकुश, अराजकता की स्थिति में सुधार, सड़कों का निर्माण, नियंत्रण वाले इलाक़े में कारोबारी ढांचा व सुविधाएं मुहैया कराना आदि कामों के चलते तालिबानी शुरूआत में लोकप्रिय भी हुए।

तालिबान के इन कारनामों से हुए लोग परेशान, होने लगा विरोध

तालिबान ने अपने कब्जे वाले इलाकों में सज़ा देने के इस्लामिक तौर तरीके लागू किए। हत्या व व्याभिचार के दोषियों को सार्वजनिक तौर पर फांसी देना व चोरी के मामले में दोषियों के अंग-भंग करने जैसी सजाएं इसमें शामिल थीं। वहीं, पुरुषों के लिए दाढ़ी व महिलाओं के लिए पूरे शरीर को ढकने वाले बुर्क़े का इस्तेमाल ज़रूरी कर दिया गया। तालिबान ने टेलीविजन, संगीत व सिनेमा पर पाबंदी लगा दी। तालिबान ने हद तो यहां तक जर दी कि 10 साल व उससे अधिक उम्र की लड़कियों के स्कूल जाने पर रोक लगा दी।

तालिबान ने बुद्ध की प्रतिमा को किया था नष्ट

तालिबान पर मानवाधिकार के उल्लंघन व सांस्कृतिक दुर्व्यवहार से जुड़े आरोप लगने भी शुरू हो गए। इसका एक बदनामी भरा उदाहरण वर्ष 2001 में देखने को मिला। तालिबान ने अंतरराष्ट्रीय विरोध के बाद भी मध्य अफ़ग़ानिस्तान के बामियान में बुद्ध की प्रतिमा को नष्ट कर दिया। तालिबान को बनाने और मज़बूत करने के आरोपों से पाकिस्तान इनकार करता रहा है। लेकिन, इसमें कोई संदेह नहीं है कि शुरूआत में तालिबानी आंदोलन से जुड़ने वाले लोग पाकिस्तान के मदरसों से निकले थे।

पाकिस्तान ने दी थी तालिबान सरकार को मान्यता

अफ़ग़ानिस्तान पर जब तालिबान का नियंत्रण था, तब पाकिस्तान दुनिया के उन तीन देशों में शामिल था जिसने तालिबान सरकार को मान्यता दी थी। पाकिस्तान के अलावा सऊदी अरब व संयुक्त अरब अमीरात ने भी तालिबान सरकार को मान्यता दी थी।

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