काव्य कुटुंब के कवि सम्मेलन में कवियों ने जमाया रंग
कवि सम्मेलन की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि व साहित्यकार वीरेन्द्र डंगवाल “पार्थ” और संचालन विजयश्री वंदिता ने किया
देहरादून : काव्य कुटुंब साहित्यिक मंच की ओर से रविवार को कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। कवि सम्मेलन में कई, शाइरों ने गीत, गजल और कविताओं के माध्यम से प्रेम, ओज और हास्य-व्यंग्य का रंग बिखेरा।
तस्मानिया एकेडमी इंदर रोड में आयोजित कवि सम्मेलन का शुभारंभ बतौर मुख्य अतिथि अपना परिवार के अध्यक्ष पुरुषोत्तम भट्ट, अति विशिष्ट अतिथि रोटरी क्लब के अध्यक्ष अनूप कुमार कौल, वरिष्ठ कवि व साहित्यकार वीरेंद्र डंगवाल पार्थ, विशिष्ट अतिथि क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ मुकुल शर्मा, गौरव त्रिपाठी, नीति सक्सेना और काव्य कुटुंब की अध्यक्ष विजय श्री वंदिता ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया। इसके बाद ईशान ने सरस्वती वंदना की। जीवन के संघर्ष की बात करते हुये विजय श्री वंदिता ने गीत ‘कितने राग-बिराग हो गए जरा पलट के देख ये पूछे अंतस के आरेख’ और कवि वीरेंद्र डंगवाल पार्थ ने कुंडलिनी छंद ‘कमलाक्ष से जब हुये उसके नयना चार, सुध बुध गोरी की गई धूमिल हुआ श्रंगार’ सुनाकर वाहवाही लूटी। कवियित्री अंजना नैना ने ‘मां को कैसू लिखूं क्या क्या उसके अंदर है’, गिरीश तिवारी मृणाल ने ‘मैं तेरे होंठों का सुर्ख होठों पर मचलता गीत हु सखी, मोहब्बत में सदियों से निभाई रीत हु सखी’ और डॉ अल्का अरोड़ा ने भ्रूण हत्या पर सुंदर रचना सुनाई। दानिश देहलवी ने ‘हवाएं जब भी चली मेरे खिलाफ चली’ उमा सिसौदिया ने ‘वो तो परदेश चला गया अपनों के पास घर छोड़कर’, प्राची कंडवाल ने बेटी पर आधारित रचना ‘जाने वो कौन सी अंधेरी दुनिया है’ सुनाकर सबकी तालियां पाई तो विनीता मैठाणी ने पुरुषों के पुरुषार्थ पर रचना पढ़ते हुये सुना कि ‘इतिहास गाता है गाथाएं वीर पुरुषों की’ सुनाकर कवि सम्मेलन को ऊंचाइयां दी। इसके साथ ही डॉ बसंती मठपाल, रईस फिगार, शौहर जलालाबादी, इम्तियाज आदि ने भी काव्य पाठ किया। कवि सम्मेलन की अध्यता कवि साहित्यकार वीरेन्द्र डंगवाल पार्थ और संचालन काव्य कुटुंब की अध्य्ष विजय श्री वंदिता ने किया।