जादू की झप्पी का अपनापन… कितना सहज कितना सरल
जादू की झप्पी का “स्पर्श”
कितनी सरलता, सहजता से होने वाली क्रिया है। किसी वाद्य को छूने से कैसी स्वर लहरियाँ निकलने लगतीं हैं , काग़ज़ – क़लम के स्पर्श से कितनी ही कविता-कहानी बन जातीं हैं , सूरज की किरणों के धरती को छूते ही रात भर से सोई ज़िंदगी जाग उठती है …चर्च की इस इमारत ने भी न जाने कितनी सच्ची प्रार्थनाएँ सुनी होंगी ….यही तो स्पर्श का जादू है।
पर क्या सचमुच किसी को छूना कभी कठिन भी होता है ? जब किसी अपने को देखने की इच्छा हो, कोई हमसे दूर हो, बुज़ुर्ग हो, बीमार हो, अकेला हो … उसे भी हमारे स्पर्श की ज़रूरत होती है .. और हम चाह के भी उस तक ना पहुँच पाएँ तो कठिनाई होती है।
किसी पुराने भवन की टूटी, उदास, अकेली, बदरंग दीवारों और खम्भों को छूने से एक अहसास जागता है, दीवारें सुनाने लगतीं हैं अपना इतिहास, अपना दर्द, अपने बीते ख़ुशनुमा पल और ना जाने क्या क्या !! कोई बिछुड़ जाता है तो उसकी वस्तुओं को सहेजकर, छूकर उसे अपने पास होने सा महसूस करते हैं, उस आत्मीय की याद में आँसू खुदबखुद बह जाते हैं, और यही स्पर्श हमें फिर से ज़िंदगी में गुम हो जाने का हौसला देता है।
जो अपने घर-द्वार को छोड़ कर दूर चले जाते हैं, वे भी राह की तकलीफ- ख़र्च के बावजूद अपनों के स्पर्श के लिए घर आते हैं। कई बार तो हमें अहसास ही नहीं होता कि हम क्यों घर आते हैं बार-बार …बस…आते हैं !ज़िंदगी तो जी ही लेते हैं हम सब। बस किसी के मिलने पर, जो तृप्ति का अहसास होता है, वह किसी का प्रेम भरा स्पर्श अथवा एक प्यारी सी जादू की झप्पी ही होता है !!
“बस यूँ ही कभी-कभी “