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वसंत पर विशेष: कवि वीरेंद्र डंगवाल “पार्थ” … धरती धवल हुई, उमंगें नवल हुई

वीरेंद्र डंगवाल “पार्थ”
देहरादून, उत्तराखंड


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मनहरण घनाक्षरी छंद

धरती धवल हुई, उमंगें नवल हुई
उम्मीदें प्रबल हुई, आया रे वसंत है

विहान में है बहार, परिमल है कहार
भ्रमर हुआ चपल, आया रे वसंत है

घोलती पवन मधु, मिलन मधुर ऋतु
प्रीत हो गई सरल, आया रे वसंत है

डाल डाल पर झूम, रही फगुनाहट है
जीवन हुआ सबल, आया रे वसंत है।।

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