लोकभाषा को समर्पित युवा कवि अरविन्द ‘प्रकृति प्रेमी’ की कुछ गढ़वाली कविताएं
अरविन्द ‘प्रकृति प्रेमी’
बजियाल गांव, टिहरी गढ़वाल
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तिमल्वा बंटवार
जौंन परसाद बांटि नि जाणी
सि तिमल्वा बंटवार बण्यां छन
पाड़ों का सन्टवार बण्यां छन।
अपड़ा तौंका खंडवार
हैका बन्द देखणा छन।
मरयां सर्पा आँखा घच्वाना
माछा-माछा सब्बि बोना
गाडा हाल क्वै नि देखणा छन।
अपड़ि गंगा सब्बि उन्द बगौणा,
हैके उब बगौण चाणा छन
झूठ लाण बल गाड पार
जु निभि जौ दिन चार।
विकासा नौं पर जौंका पाड़,
भैंसा घिच्चा पर
फ्यूंलिया फूल धरयां छन
हे गिरिराज हिमालै!
यख त सुखा दगड़ि
काचा बि फूकेंणा छन।
सौंगि सार
जब मेरा गौं मा
सड़क अर बिजली
आयी थै तब मैंन
सोची थौ कि, अब
पलायन रुकि जालु
हमारि सबसि बड़ि
द्वी समस्या निबटि गैन पण,
य त पाड़योंक
पलायन कि सौंगि सार बणिक रैगि।
21वीं सदी मा
21वीं सदी मा
न मनखि बदलि
न मनखि कु मन,
मनखि आज बि
जन कु तन।
शिक्षा बदलि पण
समाज नि बदलि,
न बुरु रिवाज बदलि
न भेद-भाव बदलि
न जात-पात बदलि
21वीं सदी मा
क्य खाक बदलि?
कुछ मनख्यों,
आज बि मन्दिरों
का द्वार बन्दै छन,
न मनख़्यों का
बणाया भगबान बदलिन
न मनखि बदलिन
21वीं सदी मा
क्य खाक बदलि?
सुध्ये-सुधि
दुःख नि होंद
डालों तैं
फूल-पाती झड़ण कु,
रन्दि जग्वाळ तौं सणि
बौड़ीक मौळयार औणा कि,
बिगर सिंगार का रन्दन तैंतई
डार नि रन्दि तौं सणि
ध्येणि का औडळै
जम्म छन ह्यूंदै बथौं औंण पर बि,
दुःख न्हीं तौं सणि,
अपड़ा अंग कटेणा कु
कुछ दिन लुलै रैक
माण्दन बोलयूं संकटै बारी कु
सदानि नि रन्दु बग्त एकै जनु
संगसार मा कैकु बि
कबि घाम, कबि छैल च
सब्बु का जीवन मा,
फेर जीवन मा पछताणु
सुधि न्हीं त हौर क्य?
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कवि परिचय
नाम-अरविन्द ‘प्रकृति प्रेमी’
माता जी-श्रीमति-सुलोचना देवी
पिता जी– श्री लाखी
जन्म-20 जून 1986
जन्म स्थान-ग्राम व पोस्ट बजियाल गांव टिहरी गढ़वाल
कुछ प्रमुख कृतियाँ-प्रकृति अर मनखि (कविता संग्रह)
संपादन-अमर शहीद श्रीदेव सुमन (संगीत मय नाटक)
विविध-संस्थापक/अध्यक्ष- सौं-करार टीरि (लोकभाषा साहित्यिक समिति पंजी.)
संवाददाता– उत्तराखंड मंथन (मासिक पत्रिका)
शिक्षा-एमएससी (जन्तु विज्ञान)
एमए (हिंदी), बीएड
सम्प्रति-स.अ.एलटी (विज्ञान)
पुरस्कार/सम्मान-अखिल भारतीय विद्यार्थी सम्मान-2015
अबोध ‘बन्धु’ लोकभाषा सम्मान- 2016
काशी लोकभारती प्रचारिणी रत्न-2018
उत्तराखंड साहित्य साधक सम्मान-2019
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