आयुर्वेद की जड़ों पर मट्ठा डालने का किया गया काम
धर्मेंद्र उनियाल ‘धर्मी’
चीफ फार्मासिस्ट, अल्मोड़ा
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आयुर्वेद शाश्वत है, इस बात पर भारत वर्ष में और भारत वर्ष से बाहर रहने वाले किसी भी व्यक्ति को किसी प्रकार का कोई संदेह नहीं होना चाहिए। आयुर्वेद में बताया गया है कि ब्रहमा जी ने दक्ष प्रजापति को आयुर्वेद का ज्ञान दिया था। दक्ष प्रजापति 18575 साल से पूर्व पैदा हुऐ थे।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार संसार की प्राचीनतम् पुस्तक ऋग्वेद है। विभिन्न धार्मिक विद्वानों ने इसका रचना काल ५,००० से लाखों वर्ष पूर्व तक का माना है। इस संहिता में भी आयुर्वेद के अतिमहत्त्व के सिद्धान्त यत्र-तत्र विकीर्ण है। चरक, सुश्रुत, काश्यप आदि मान्य ग्रन्थकार आयुर्वेद को अथर्ववेद का उपवेद मानते हैं।
आयुर्वेद की जड़ें बहुत गहरी हैं, बीच के कुछ कालखंडों में इसकी जड़ों पर मट्ठा डालने का कार्य किया गया। लेकिन, अब यह नहीं चलेगा, आज समाज में आयुर्वेद सक्षम और स्वीकार्य है, इस सच को भी नहीं नकारा जा सकता।
आयुर्विज्ञान अर्थात (आयु +र् + विज्ञान ) आयु का विज्ञान है। यह वह विज्ञान व कला है, जिसका संबंध मानव शरीर को निरोग रखने, रोग हो जाने पर रोग से मुक्त करने, उसका शमन करने व आयु (निरोगी जीवन) बढ़ाने से है। प्राचीन सभ्यताओं मनुष्य ने होने वाले रोगों के निदान की कोशिश करती रहे हैं। इससे कई चिकित्सा (आयुर्विज्ञान) पद्धतियाँ विकसित हुई। इसी प्रकार भारत में भी आयुर्विज्ञान पर विकास हुआ, जिसमें आयुर्वेद पद्धति सबसे ज्यादा जानी जाती है, अन्य पद्धतियाँ जैसे कि सिद्ध भी भारत में विकसित हुई।
प्रारम्भिक समय में आयुर्विज्ञान का अध्ययन जीव विज्ञान की एक शाखा के समान ही किया गया था। बाद में ‘शरीर रचना’ व ‘शरीर क्रिया विज्ञान’ आदि को इसका आधार बनाया गया।लेकिन, पाश्चात्य में औद्योगीकरण के समय जैसे अन्य विज्ञानों का आविष्कार व उद्धरण हुआ। उसी प्रकार आधुनिक आयुर्विज्ञान एलोपैथी का भी विकास हुआ, जोकि तथ्य आधारित चिकित्सा पद्धति के रूप में उभरी।
हमारे संस्कार यह नहीं कहते कि कोई चिकित्सा पद्धति खराब है। हमें किसी भी चिकित्सा पद्धति के विरोध में नहीं उलझना चाहिए। यह उलझन कुछ व्यापारी मानसिकता के लोग चला रहे हैं, अपने व्यवसाय में मुनाफे के लिए, राजनीतिक मुनाफे के लिए या अपने अंहकार या दंभ के लिए हमें बलि का बकरा बना रहें हैं। हमें जिस चिकित्सा पद्धति से लाभ हो, उसे अंगीकार करना चाहिए, क्योंकि प्राण रक्षा सर्वोपरि है ।
किसी भी लाला, बाबा, चाचा, मामा, अलां-फलां के बहकावे में मत आइए। बाकी चिकित्सा पद्धतियां और भी बहुत सारी हैं । जय आयुर्वेद।