चंदेल साहिब की एक कहानी.. मां की ममता का मोल नहीं
चंदेल साहिब
देवभूमि हिमाचल
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विधा:- कहानी…. अंतिम इच्छा
बरसात का मौसम था, झमाझम मेघ बरस रहे थे। श्रीकांत ने घड़ी में समय देखा शाम के लगभग 6 बज रहे थे, अपना बैग औऱ छाता उठाकर वह गेट की ओर चल दिया।
गाड़ी में बैठने ही वाला था कि एकाएक उसका फ़ोन बजने लगा। उसने गाड़ी में बैठते समय फ़ोन उठाया औऱ बोला नमस्कार जी कौन बात कर रहा है? तुम्हारी पद्माक्षी दिदी बात कर रही हूँ सामने से जवाब मिला। अरे! बड़े दिदी आप, पर यह नम्बर तो आपका नहीं है आप ठीक तो हो। मैं अच्छी हूँ तुम कैसे हो। अपना ख़्याल रखा करो जल्दी सोया औऱ उठा करो, ज्यादा स्ट्रेस मत लिया करो, भागदौड़ की दुनिया में अपना भी ध्यान रखो। बस-२ दिदी, कितनी फिक्र करते हो आप मेरी, जी मैं अपना ख़्याल रख रहा हूँ पहले से अब तबियत भी अच्छी है जी।
आप कैसे हो! औऱ आपने बताया नहीं यह नम्बर किसका है। अरे ये नम्बर तेरे भांजे ने लिया है उसका पुराना नम्बर बंद हो गया था। अच्छा ख़्याल रखो अपना फोन रखती हूं। बात करते-२ पता ही नहीं चला कब स्टेशन पर वह पहुंच गया। वह उतरा औऱ गाड़ी आगे चली गयी।
हल्की बूंदाबांदी हो रही थी, ओह! छाता तो गाड़ी में ही छूट गया। चल श्रीकांत बारिश में भीगते हुए उसने अपने अंतर्मन से कहा औऱ कमरे की तरफ चल दिया। अचानक बारिश तेज़ हो गई औऱ उसे सामने खड़े एक पीपल के पेड़ का सहारा लेना पड़ा।यह पहली बार नहीं था कि बारिश से बचने के लिए श्रीकांत को पेड़ का सहारा लेना पड़ रहा था। मन ही मन में कुछ सोच रहा था कि उसे किसी के रोने की आवाज़ सुनाई दी। धीरे-२ यह आवाज़ बढ़ती चली गई। एक तरफ़ बारिश/बिजली की गर्जना दूसरी तरफ़ कोंधती रुदन की आवाज़ औऱ तीसरी तरफ़ ख़ुद के विचारों का सैलाब से अचानक वो सहम गया। कुछ देर यह अनवरत चलता रहा फ़िर अचानक रोने की आवाज़ बन्द हो गयी, पास में एक दुकान थी जहाँ एक बूढ़े अंकल बैठे थे। श्रीकांत उनके पास गया औऱ प्रार्थना की बाबा कृपया बताएँ कि यहाँ पर क्या हुआ है। तब बाबा कहने लगे बेटा, सावित्री औऱ मोहन के यहाँ दो बेटियाँ थी। बेटे की चाह में अपनी बहन के एक बेटे को सावित्री ने गोद ले लिया, उसका नाम श्याम रखा। उसे अपनी सगी बेटियों से ज्यादा प्यार दिया, पढ़ाया लिखाया, आईएएस अधिकारी बनाया। लेक़िन उसने अपनी मनपसंद लड़की से प्यार संबंध जोड़ शादी कर ली, जो अमेरिका की निवासी थी औऱ हमेशा के लिए अपने परिवार नौकरी व देश को छोड़कर अमेरिका उसके साथ रहने को चला गया औऱ आज तक मुड़ कर न आया न कभी उन माँ पिता की खबर तक ली जिन्होंने उसे सगे बेटे से ज़्यादा प्यार किया, उसकी हर इच्छा को पूरा किया, उसको क़भी धूप न लगने दी।
बेचारी सावित्री ने न जाने क्या-२ ख़ाब बुने थे, बेटा हमारे लिए यह करेगा वह करेगा। लेक़िन सबकुछ मिट्टी में मिल गया। बेटे की राह तकते-२ दो सालों बाद सावित्री ने अपनी आंखें हमेशा के लिए बन्द कर दी औऱ आज ये रोने की आवाज़ जो तुम सुन रहे हो यह सावित्री औऱ मोहन की दो बेटियों की है। अंतिम समय मे सावित्री की दोनों आँखे पट को निहार रही थी मानो अभी श्याम आएगा औऱ उसे अपने गले से लगाएगा। लेकिन, उसकी अंतिम इच्छा भी पूरी न हो सकी औऱ चल बसी। अंतर्मन को कुचेटते श्रीकांत मन ही मन यह कह कर वहाँ से चल दिया मेरा ईश्वर दुश्मन को भी ऐसा बेटा क़भी न दे।
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शिक्षा:- माँ का दिल अनमोल है दुनिया में उसके जैसा दूसरा कोई नहीं।