धरा-गगन हैं साक्षी सजा सिर पर ताज, भारत माँ ने पाया उत्तराखंड सरीखा लाल…
तारा पाठक
कवियत्री, समाज सेविका
कुलावा, मुंबई, महाराष्ट्र
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धरा-गगन हैं साक्षी
सजा सिर पर ताज,
भारत माँ ने पाया
उत्तराखंड सरीखा लाल।
भेजा है गिरिराज ने
संदेशा बधाई का।
लेकर आया है जिसे
चंचल झौंका पुरवाई का।
रुनक-झुनक सुर सरिता नाचे
दे -दे लहरों की ताल।
भरत माँ ने पाया
उत्तराखंड सरीखा लाल ।
रत्नाकर ने भेजा है
सुन्दर रत्नों का हार।
दिग्बधुएं आने लगी
करने सोलह श्रृंगार।
सौंदर्य राशि शत-शत बिखेरती
इंद्रधनुषी जाल।
भारत माँ ने पाया
उत्तराखंड सरीखा लाल।
सूरज दादा ने भेजा है
किरणों का रथ नभ से।
चँद मामा ने आलोकित
किया घर-आँगन कब से।
तारिकाऐं बुन रही
झिलमिल सुन्दर शाल।
भारत माँ ने पाया
उत्तराखंड सरीखा लाल।
बादलों ने भेज दिया
था अग्रिम संदेश।
जनम दिन तक चले जाएं
शायद हम विदेश।
फिर तो आना हो पाएगा
आने वाले साल।
भारत माँ ने पाया
उत्तराखंड सरीखा लाल।
पंचतत्व ने भी भेजी है
लख-लख आशीषा।
सर्वश्रेष्ठ बनना तू जग में
न हो कोई तेरे जैसा।
निज प्रयत्न से करना उन्नत
भारत माँ का भाल।
भारत माँ ने पाया
उत्तराखंड सरीखा लाल।