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नेत्रदान/देहदान की ओर कदम बढ़ाता एक और सिपाही.. संजीव कुमार तिवारी

जगदीश ग्रामीण ‘दर्द – ए – दिल’
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आज आपका परिचय एक ऐसे शख़्स से कराता हूं जो पिछले 15 साल से वर्ष में एक बार रक्तदान अवश्य करते हैं। यह क्रम कोरोना काल में भी जारी रहा, जब आप और हम घर की चहारदीवारी में अपने आपको सुरक्षित रखने के लिए बेचैन थे।
सारंगधर वाला (तेलपुर- भोगपुर) निवासी संजीव कुमार तिवारी विद्यार्थी काल में किसी क्रांतिकारी से कम नहीं थे। युवावस्था में शिक्षण के साथ ही साथ सेवा कार्य में भी अग्रणी रहे। सरस्वती शिशु मंदिर भोगपुर से लेकर साहिया तक विद्या भारती और उत्तरांचल उत्थान परिषद के साथ जुड़कर सेवा कार्य में जुटे रहे। उत्तराखंड आंदोलन के समय जौनसार बाबर क्षेत्र में हिस्सा लिया। 3 दिन तक आमरण अनशन पर बैठे। लेकिन, उत्तराखंड आंदोलनकारी प्रमाण पत्र के लिए कभी कतार में नहीं लगे।
अमर उजाला और दैनिक जागरण समाचार पत्रों के लिए आपने स्वतंत्र पत्रकार के रूप में लेखन कार्य करते हुए क्षेत्र की अनेक समस्याओं का निदान भी कराया। सहयोगी स्वभाव के संजीव में पिता स्व. सतीश भाई के संस्कारों की अमिट छाप दिखाई देती है। संजीव वर्तमान में दिल्ली में अपना व्यवसाय करते हैं।
संजीव नेत्रदान और देहदान के लिए उत्सुक हैं। उनका कहना है कि एक दिन तो ये आंखे बंद होनी ही हैं तो क्यों न किसी के जीवन में उजाला करके जाएं। देहदान करके चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सहयोग करना हमारा भी कर्तव्य है।

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