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संवेदनशील रचनाकार डॉ अलका अरोड़ा की कविता … उठो नारी आंसू पोंछो खुद की कीमत पहचानो..

डॉ अलका अरोड़ा
प्रोफेसर, देहरादून
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सशक्त बनो हे नारी तुम
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उठो नारी आंसू पोंछो
खुद की कीमत पहचानो।

लाज का घूंघट ढाल बना लो
अहंकार का तिलक लगा लो
स्वाभिमान की तान के चादर
खुद में खुद को सुदृढ बना लो

उठो नारी आंसू पोंछो
खुद की कीमत पहचानो।

अपनी शक्ति को पहचानो
अपमान को दवा बना लो
अश्रुपूरित अंखियों को
जीने का संबल बना लो

उठो नारी आंसू पोंछो
खुद की कीमत पहचानो।

सारे पासे आप बिछा लो
किस्मत भरोसे कभी न टालो
हार जीत दोनों पल डों को
अपनी मुट्ठी में दबा लो

उठो नारी आंसू पोंछो
खुद की कीमत पहचानो।

सृष्टि की सुंदर रचना हो तुम
त्याग संयम की प्रतिपल मूरत
शक्ति का अवतार हो तुम
कोमल नहीं कटु वेश धरो तुम

उठो नारी आंसू पोंछो
खुद की कीमत पहचानो।

मत परोसो खुद को यूँ
जैसे नारी संवेदना विहीन
लाज बचाने को अपनी
स्वयं की ताकत अर्जित करो

उठो नारी आंसू पोंछो
खुद की कीमत पहचानो।

मत झूलो नियति की वेदी पर
अपनी इज्जत आप बचा लो
ललाट पर स्वाभिमान तिलक से
वीर योद्धा की मोहर लगा लो

उठो नारी आंसू पोंछो
खुद की कीमत पहचानो।।

 

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