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डॉ अलका अरोड़ा की एक हास्य रचना… मैं भी कलयुग की नारी हूँ पुराना ढूंढूंगी ही नहीं

डॉ अलका अरोड़ा
प्रोफेसर, देहरादून
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प्रभु से अलौकिक प्रार्थना
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आज सुबह अजब नजारा हुआ घर में
धीमे से कान लगाया आज मंदिर में

पति महोदय धीरे-धीरे बड़ बड़ा रहे थे
ईश्वर से कुछ मन की बात बता रहे थे

बोले कि प्रभु पहले से काफी बदल गये हो
सारी पुरानी नीति की अवहेलना कर रहे हो

देखते सुनते बहुत थे फिल्मों वाला सीन
वही पुराना कुम्भ के मेले का दृश्य गमगीन

वो भाई का भाई से बिछुड़ जाना
और माँ-बाप से पुत्र का विछोह पुराना

कितनी जोड़ियां तुमने कुंभ मेले में गुमाई थी
फिल्मों के अंत समय में आकर मिलवाई थी

अब आपको हुआ क्या है महाराज
कलयुग में हो जाये फिर से वही क्राई

भाई-भाई तो बहुत अलग किये तुमने
हे दानेश्वर एक बार पति-पत्नि पर भी करो ट्राई

एक बार ये जोड़ी भी बिछुड़वा दो
कलयुग में अपने होने का अहसास करवा दो

अरे ये फार्मूला मुझ पर ही अपनाओ
मेरी पत्नी को चाहे कहीं भी गुमाओ

मिलन के सारे रास्ते बंद करवा दूंगा
फेसबुक व्हाटसएप से सदा के लिए अलविदा लूंगा

ये ही रास्ते आजकल पुनर्मिलन करवा रहे हैं
आपकी व्यवस्था में व्यवधान ला रहे हैं

मैंने सुनी पतिदेव की प्रार्थना भरपूर
अरे धीरे क्यूं वरदान माँग रहे हो

मेरे खो जाने की मन्नत क्यूं माँग रहे हो
एक बार मुझसे ही कहा होता

तुम्हारा ममेरा भाई भी तो कितना स्मार्ट सुन्दर हैंडसम और डेशिंग है

वो तो मुझे देख मुस्कुराता भी है
अरे मुझे उसी के साथ भगा दिया होता

मैं भी कलयुग की नारी हूँ
पुराना ढूंढूंगी ही नहीं

रेलगाड़ी के नये इंजन से रिश्ता जोडूंगी
तुम्हारे जैसा खटारा माल हमेशा के लिए छोड़ दूँगी

इतने छोटे से काम के लिए क्यूँ कुंभ का सीन बिगाड़ते हो
दबी इच्छा खुले आम जाहिर करो क्यों दबी जुबाँ बोलते हो

हे प्रियतम हे प्राणनाथ
अलग होने का कुछ मजा हमको भी दिला दो
मन्नत ऐसी मांगों जिसमें दोनों का भला हो।।

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