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डॉ अशोक कुमार मिश्र “क्षितिज” की कविता.. चाँदनी में उद्विग्नता

डॉ अशोक कुमार मिश्र “क्षितिज”
देहरादून, उत्तराखंड
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चाँदनी में उद्विग्नता
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रात जब भी
सितारों की कशीदाकारी पोशाक पहन,
निशीथ की नीरवता में,
दिल की उद्विग्नता संग
बाँसुरी बजाती है,
चाँद टहलता है भरे आकाश में,
छन-छन से छनकती चाँदनी,
उस झील की सतह पर
उतर आती है।

ऐसे में निहारना चाहता हूँ
तुम्हारे मुखड़े को,
जिसे तुम्हारे संग बिताये
प्रथम नौका विहार के वक्त
हुबहू संजो दिया था,
कांतियुक्त उस तेज को
धवल जल में,
चाहत के अनमोल पल में।

अब चहुँओर
‘नेटवर्कों’ के आत्मप्रशंसित गान,
रूपहला जल तंतुओं को,
छिन्न-भिन्न कर देते हैं।
परन्तु जज़्बातों की आतिशबाज़ी में,
जीवन के आखिरी क़दम तक,
पग-पग
खुली आँखों से
सारा आसमान समेट लेना चाहता हूँ,
उस आभायुक्त झील की धवल अमरता के लिए।

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