डॉ शशि जोशी की एक रचना.. जा रहा है यह दिसम्बर भी कलैंडर छोड़कर!
डॉ शशि जोशी
प्रभारी प्रधानाध्यपिका (एलटी हिंदी)
राजकीय कन्या उमावि बांगीधार, सल्ट, अल्मोड़ा उत्तराखंड
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हर हृदय में याद का गहरा समंदर छोड़कर!
जा रहा है यह दिसम्बर भी कलैंडर छोड़कर!
चढ़ रहें हैं धीरे-धीरे उम्र की हम सीढ़ियां,
वक्त आगे बढ़ रहा है, वक्त का घर छोड़कर।
हां, उपस्थित ही रहेगा वह गमन के बाद भी,
जाएगा जो भी धरा पर, ढाई आखर छोड़कर!
झांकता है एक सूरज, फिर से नूतन वर्ष का,
आएगा कल सामने, पीछे दिसम्बर छोड़कर!
क्या नवम्बर, क्या दिसम्बर, सब समय के रूप हैं!
जाएंगे सब एक दिन यह धरती-अम्बर छोड़कर!
©®डॉ शशि जोशी “शशी”
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सर्वाधिकार सुरक्षित।
प्रकाशित…..31/12/2020
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