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विरोध: पदोन्नति परित्याग शिक्षकों का अपमान, प्रत्येक तीन साल में मिले पदोन्नति

देहरादून। राजकीय शिक्षक संघ की जनपद टिहरी गढ़वाल की कार्यकारिणी ने पदोन्नति परित्याग के शासनादेश का विरोध किया है। संघ के जिलाध्यक्ष एसएस सरियाल ने कहा कि पदोन्नति परित्याग के संबंध में हुआ शासनादेश शिक्षकों का अपमान है। इसे कतई स्वीकार नहीं किया जाएगा। शिक्षकों की पदोन्नति प्रत्येक तीन साल में होनी चाहिए।
सरियाल ने कहा कि उत्तराखंड शासन ने पदोन्नति के परित्याग के संबंध में जो शासनदेश जारी किया है, उसका हर हाल मे विरोध होना चाहिए क्योंकि इस शासनादेश से कोई भी कर्मचारी प्रभावित नहीं होता है। प्रदेश के सभी कर्मचारियों को पदोन्नति में निश्चित रूप से कुछ न कुछ आर्थिक लाभ होता ही है। शिक्षकों को पदोन्नति से कोई आर्थिक लाभ नहीं होता। उत्तराखंड में एक शिक्षक चार-पांच विषयों में परास्नातक होता है जिससे उसको तथाकथित पदोन्नति (एलटी से प्रवक्ता) दी जाती है। उसके विषय लाभ के आधार पर यह तथाकथित पदोन्नति मिलती है। जबकि, आर्थिक लाभ कुछ भी नहीं होता। पदोन्नति पाने में 25 से 30 वर्ष से अधिक का समय लग जाता है या यू कहें कि एक पदोन्नति पाने में पूरा सेवाकाल लग जाता है। उन्होंने संघ पदाधिकारियों पर भी सवाल उठाए। कहा कि पिछले सात-आठ सालों से राजकीय शिक्षक संघ की कार्यकारिणी अपंग है, सिर्फ पद को घेरकर बैठे हुए हैं। शासन से ठोस वार्ता कभी नहीं हो पायी। कोई भी बड़े फैसले शिक्षक हित में नहीं हुए, जो पदाधिकारियों की योग्यता पर बड़ा प्रश्नचिन्ह है। शिक्षक चर्चा कर रहे हैं कि संघ में पदाधिकारियों का कोई औचित्य नहीं रह गया है, इन्हें सिर्फ पद चाहिए, नीतिगत काम नहीं करेंगे।

एलटी शिक्षकों पर पड़ेगी शासनादेश की मार

सरियाल ने कहा कि उक्त शासनदेश की मार सबसे ज्यादा एलटी शिक्षकों पर ही पड़ेगी। जबकि, विभागीय हकीकत यह है कि पदोन्नति के लिए शासनादेश होते हैं। लेकिन, रिक्त पद के संबंध में अतिथि प्रेम भी लिखा होता है।

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