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ब्रेकिंग…डॉ धन सिंह की जुगाड़ू छतरी (अंब्रेला एक्ट) तैयार, अब आईएएस भी बनेंगे कुलपति

वीरेन्द्र डंगवाल “पार्थ”
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देहरादून। उच्च शिक्षा में सुधार के लिए जिस छतरी (अंब्रेला एक्ट) को लाने की बयानबाजी उच्च शिक्षा राज्यमंत्री डॉ धन सिंह रावत सरकार बनने के बाद से ही कर रहे हैं। वह छतरी शिक्षा में सुधार के बजाय ब्यूरोक्रेट के लिए रिटायरमेंट के बाद का जुगाड़ बनकर अवतरित होने वाली है। इस छतरी पर सरकार की मुहर लगी तो शिक्षाविद् के बजाय अपर मुख्य सचिव स्तर के अधिकारी भी कुलपति की कुर्सी पर विराजमान हो सकेंगे यानी सचिवालय के रिटायरमेंट बुजुर्गों के लिए उत्तराखंड के विश्वविद्यालय नया वृद्धाश्रम होंगे।
डॉ धन सिंह रावत के नेतृत्व में उच्च शिक्षा में सुधार के लिए अंब्रेला एक्ट तैयार किया गया है। अंब्रेला एक्ट लाने का उद्देश्य यह बताया गया कि सूबे के सभी विश्वविद्यालयों को एक नियम के तहत संचालित किया जा सके। लंबी कवायद के बाद तैयार किया गया मसौदा उच्च शिक्षा में सुधार में कितना कारगर होगा यह तो अभी भविष्य के गर्भ में है यानी वह लागू होने के बाद की उजागर होगा। लेकिन, अंब्रेला एक्ट पर जो शुरुआती रुझान आए हैं वह कतई सुखद नहीं हैं। शुरूआत में ही इस एक्ट में शिक्षा सुधार के बजाय जुगाड़बाजी पर चर्चा शुरू हो गई है। सबसे आपत्तिजनक जो बिंदु इस एक्ट में है वह है कुलपति पद के लिए योग्यता (राज्य सरकार के अपर मुख्य सचिव या उच्च केंद्र सरकार में सचिव या उच्च ग्रेड जी या उच्च पद के वरिष्ठ वैज्ञानिक)। सवाल यह कि कुलपति पद के लिए शिक्षाविद् के बजाय आईएएस के लिए द्वार क्यों खोले जा रहे हैं।
योग्यता के लिए तय किया गया यह बिंदु उजागर करता कि भविष्य में विश्वविद्यालयों में किस तरह की नियुक्तियां होने वाली है। उत्तराखंड में ब्यूरोक्रेट्स को रिटायरमेंट के बाद सेट करने की परंपरा पड़ चुकी है। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि अंब्रेला एक्ट में कुलपति पद के लिए योग्यता का यह जुगाड़ उन्हीं के लिए है। अंब्रेला एक्ट में कुलपति पद के लिए योग्यता के बिंदु में किए गए परिवर्तन को लेकर शिक्षाविदों में रोष है। ऐसे में संभव है कि जल्द ही इसके विरोध के शिक्षाविद् मुखर होंगे।

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