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कवि जीके पिपिल की एक ग़ज़ल…. उसके चेहरे की रंगाई पुताई करनी है किसी दिन

जीके पिपिल
देहरादून,उत्तराखंड


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गज़ल
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उसके चेहरे की रंगाई पुताई करनी है किसी दिन
खूब अच्छे से उसकी सुताई करनी है किसी दिन।

वो तलबगार है और अपने हाथ भी सीधे होने हैं
उसकी रुई की तरह धुनाई करनी है किसी दिन।

बहुत ढीड है हड़काने से उसका कुछ नहीं होगा
अब मिलकर उसकी तुड़ाई करनी है किसी दिन।

ज़हर भले कितना कम हो प्राण घातक होता है
अब ऐसे सपोलों से रिहाई करनी है किसी दिन।

बहुत गंदे दाग़ दिये हैं उसने हमारी संस्कृति को
उन्हें धोने को उसकी धुलाई करनी है किसी दिन।

उसका मज़हब परस्ती का मर्ज़ बढ़ता जा रहा है
अब मिलकर उसकी दवाई करनी है किसी दिन।

हमारे घर में घुसकर हमें ही निकालना चाहता है
हर हालत में उसकी बिदाई करनी है किसी दिन।

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