कवि/शाइर जीके पिपिल की ग़ज़ल … हर घटना की अख़बार में कभी कभी ख़बर नहीं होती
जीके पिपिल
देहरादून,उत्तराखंड
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गज़ल
हर घटना की अख़बार में कभी कभी ख़बर नहीं होती
इंसा के वास्ते कभी कभी हर रात की सहर नहीं होती
जिन पर गुजरी है कभी उन लोगों से भी पूछकर देखो
हर चारदीवारी घेरा तो हो सकती है पर घर नहीं होती
वैसे तो हर दिल में मोहब्बत अंकुरित होनी ही चाहिए
समाज के सख़्त प्रतिकूल प्रतिबंधों से मगर नहीं होती
लकीरों का नक्शा तो हर इंसान के हाथों में होता ही है
मगर लकीरें ही तो हमेशा इंसान का मुकद्दर नहीं होती
ये ही हैं जिनसे इंसान अपनी क़िस्मत बदल सकता है
श्रम व धुन के अतिरिक्त सफ़लता की डगर नहीं होती
सच्चे ऋषि मुनियों के परमात्मा से सच्चे संबंध होते हैं
दुआ उनकी देर से फलीभूत हो पर बेअसर नहीं होती
माना कि डूब जाते हैं नाखुदा तक मझधार में अकसर
ले जाती है नैया साहिल तक हर मौज भंवर नहीं होती।