कवि जसवीर सिंह हलधर की हिंदी गज़ल.. दिले जज़्बात लिखता हूँ तराने हिन्द गाता हूँ
जसवीर सिंह हलधर
देहरादून, उत्तराखंड
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ग़ज़ल (हिंदी)
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दिले जज़्बात लिखता हूँ तराने हिन्द गाता हूँ।
अनाड़ी जो समझते हैं उन्हें करतब दिखाता हूँ।
मिला है हुनर मौला से मुझे हर फन में ढलने का,
अदब की महफिलें गर हो तो गज़लें भी सुनाता हूँ।
अना को ताक पे रक्खा तभी सीखा है कुछ लिखना,
किये उस्ताद से वादे सभी पूरे निभाता हूँ।
जहां तक हो सका मैंने सभी का मान रक्खा है,
बड़ों से सीखता हूँ और छोटों को सिखाता हूँ।
नहीं परदेश आकर भूल पाया गांव की यादें,
पुराना पेड़ बरगद का अभी तक साथ पाता हूँ।
बिधायें छंद की सीखी बजुर्गों के सफीनों से,
कभी दोहा कभी मुक्तक सभी कुछ गुनगुनाता हूँ।
चमक यूँ ही नहीं आती है ग़ज़लों में सितारों सी,
हजारों शे’र पढ़कर तब नया मतला उठाता हूँ।
यहां मक़्ता बनाना भी जरूरी हो गया “हलधर”,
शहीदों की चिता की राख मांथे पर सजाता हूँ।