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कर्मशील इस मानव युग में.. निश्चित ही सुख भोगा करते..

डॉ अलका अरोड़ा
प्रोफेसर, देहरादून
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दक्षता

है विशाल दक्षिता मानव में गर
जो चाहे वह ही बन जाए
भाग्य जगे संभल बने नर
मन का तिमिर भी मिट जाए

अनमित अगुणित कर्मशीलता
और विश्वास जहाँ है
तुम जानो संतुलित समन्वित जीवन का आवास वहाँ है

कर्मशील इस मानव युग में
निश्चित ही सुख भोगा करते
दुर्बल निर्बल दीन-हीन के
रोने में युग बीता करते

निशस्त्रों पर जो वार करे
वो वीर नहीं कहलाता है
हथियारों को लेकर बल से
वार करे कायर कहलाता है

जरा-जरा सी बात पर देखो
मारकाट करने वालों
प्रेम सरोवर में प्राणों का
मूल्यांकन करने वालों

उजले हृदय से निकली
मुस्कान कपटता से बढ़कर है
जिनके हाथों संसार पराजित
वश में हो जाता परमेश्वर है

यही सत्य है सच हमेशा
अविचर एवं स्थिर खड़ा
हे मानव क्यों विषमय विषयों की
धारा में तू अविरल बहा

जाग रहा है कर्म देश में
श्रमगीत का बोल उठा
कृतित्व उभराया फिर से
दक्षता से हुनर जगा

उठो बढ चलो ज्योतिमार्ग पर
भारत माता है पुकारती
प्राणों के निर्मल सुमनों से
एक बार फिर सजे आरती

शंखनाद के आह्लाद से
स्वर पुनः गुंजित कर दो
प्राण न्योछावर मातृभूमि पर
पुण्य धरा अनुरंजित कर दो।

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