कवि वीरेन्द्र डंगवाल “पार्थ” का एक राजनगर को जन्मदिवस पर साहित्यिक नमन.. एक रचना
वीरेन्द्र डंगवाल “पार्थ”
देहरादून, उत्तराखंड
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टिहरी… एक राजनगर .. जन्मभूमि
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छूट गया वो नदी किनारा
छूटी बहती अविरल धारा
छूट गया घर आंगन मेरा
छूटा मुझ से पहाड़ सारा।
कुछ यादें बचपन की वहां पर
कुछ यादें लड़कपन की
कुछ लम्हें छूटे हैं वहां पर
संग बिताए प्रियतम के
छूट गया है वहां पे वो अहसास प्यारा प्यारा
छूट गया वो नदी किनारा….
छूटे खेत खलिहान वहां पर
छूटी गांव की पगडंडी
तड़प रहे उमस भरे मैदानों में
छूटी पवन ठंडी ठंडी
छूट गई है प्राकृतिक जल स्रोतों की धारा
छूट गया वो नदी किनारा…
जो जन्मभूमि वो मातृभूमि
पुरखों का बसाया हुआ गांव
कट गया वो बूढ़ा आम और पीपल
जहां ग्वैर घसेरी लेते थे छांव
समा गया है झील में घंटाघर वो प्यारा
छूट गया वो नदी किनारा…
यादें उस आंगन की रह गई
जहां से उठी थी दुल्हन की डोली
टूट गए वो मोर संघाड़
जहां से छुप के सखियां देती थी गाली*
समा गई झील में देवदार की तिबारी
छूट गया वो नदी किनारा…
समा गया एक शहर
चालीस गांव झील में
मिट गई एक सभ्यता संस्कृति
विकास के इस खेल में
बदल गया इतिहास में भूगोल वहां का सारा
छूट गया वो नदी किनारा…
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गाली*- पहाड़ में शादी ब्याह के मौके पर बारातियों से दुल्हन की सहेलियों की काव्यात्मक नोकझोंक/छेड़छाड़
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प्रकाशित…..28/12/2020
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