प्राकृतिक स्रोतों को पुनर्जीवित कर व्यू प्वाइंट के रूप में विकसित होंगे ‘ऑक्सीजन बैंक’
-राहगीरों के साथ ही जंगली जानवरों को भी पानी व प्राण-वायु उपलब्ध करवाने की ठानी है मनमोहन ने
कमलेश्वर प्रसाद भट्ट
देहरादून, उत्तराखंड
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जीवनशैली को खुशहाल कैसे बनाया जाय, इसके लिए दुनियाभर में नित नए प्रयास किए जाते हैं। राष्ट्रीय कार्यक्रमों को गतिशील बनाये रखने के उद्देश्य से आमजन की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए वातावरण सृजन किया जाना जरूरी होता है।
आज हम ‘विश्व वायु दिवस’ जिसे वर्ल्ड विंड डे या विश्व पवन दिवस भी कहते हैं, मना रहे हैं। ‘वायु दिवस’ का उद्देश्य पवन ऊर्जा और इसके उपयोग के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। जरा सोचिए कि बिना हवा के जिंदगी कैसे होगी? जी हाँ हवा है तो जीवन भी है। आज भले ही दुनियाभर के वैज्ञानिक कई अन्य ग्रहों पर वायु की तलाश में लगे हों, किन्तु हमें इसके वैकल्पिक तरीके बल्कि यूँ कहें कि पारम्परिक तरीकों पर भी विचार करना होगा।
हम उत्तराखंड की बात करें तो यहाँ जल, जंगल व वन सम्पदा सुदृढ़ हैं। पर्यावरणविद श्रद्धेय सुन्दरलाल बहुगुणा जी के साथ ही मातृशक्ति की वाहक गौरा देवी जी व चंडी प्रसाद भट्ट जी ने तो बहुत पहले ही पर्यावरण संरक्षण की उदघोषणा कर दी थी। उन्होंने विश्वभर में विश्व पर्यावरण दिवस से पहले ही यह संदेश दे दिया था कि,
“क्या हैं जंगल के उपकार? मिट्टी, पानी और बयार। मिट्टी, पानी और बयार, जिंदा रहने के आधार”
मुझे अच्छी तरह से याद है, जब भी हम पर्यावरणविद सुन्दरलाल बहुगुणा जी से मिलते थे तो वे अक्सर कहते “अगला युद्ध पानी के लिए होगा”। वास्तव में जल का स्तर धीरे-धीरे घटता जा रहा है, नदियाँ सूखती जा रही हैं, जिसके दुष्परिणाम मनुष्य भुगत रहा है। कहते हैं कि विकास के साथ ही विनास भी जुड़ा है, गाँव-गाँव तक सड़क पहुँचने के कारण हमारे पैदल मार्ग से आवाजाही बन्द हो गई। धीरे-धीरे वहाँ रास्ते के धारे (जल स्रोत) भी सूखते गए। इतना ही नहीं मवेशियों के लिए जगह-जगह बनी चाल-खाल (तालाब) भी सूखने लगे या जँगली घास से दबे होने से अदृश्य हो गए। प्रकृति के नियमों की अनदेखी हमारे लिए कहीं न कहीं आपदाओं का कारण बनी है। आज लोगों को कई मील दूर जाकर अपने लिए पानी का इंतजाम करना पड़ता है, राहगीर पानी के लिए तरसते हैं, फिर प्रकृति के इस अमूल्य उपहार को बन्द बोतलों के रूप में खरीद कर प्रयोग किया जा रहा है।
कोरोना काल में जहाँ आमजन स्वयं को एकाकीपन की जद में महसूस कर रहा हो। वहीं, वन विभाग के मुनिकीरेती नरेंद्रनगर रेंज उपप्रभागीय वनाधिकारी मनमोहन सिंह बिष्ट द्वारा अपने डीएफओ धर्म सिंह मीणा के संरक्षण व अधीनस्थ कर्मचारियों के सहयोग से कुछ अलग अनुकरणीय कार्य कर मिसाल पेश की गई। यूँ तो मनमोहन बिष्ट पूर्व में भी अपने कर्त्तव्य निर्वहन के साथ जनसमुदाय से जुड़ी अनेकों गतिविधियों में योगदान देते रहे हैं। लेकिन, इस बार उनके मन में दो कार्य मुख्य रूप से हैं। पहला -“पानी” और दूसरा- “शुद्ध वायु”। इस निःस्वार्थ भाव से मन में समाज सेवा की ललक को अंजाम देने में सहयोगी बने वन दरोगा राकेश रावत। नरेन्द्रनगर रेंज में जगह-जगह बंद पड़े जल स्रोत ढूंढकर उन्हें राहगीरों के लिए उपलब्ध किया गया है, इतना ही नहीं घुमन्तु जानवरों के लिए भी पानी छोड़ा गया है।
उत्तराखंड नीति आयोग के पूर्व सदस्य व एप्पल ग्रोवर एसोसिएशन उत्तराखंड के अध्यक्ष डीपी उनियाल जी सानिध्य में मुझे भी नागणी-चम्बा स्थित स्यूल खाला देखने का सौभाग्य मिला। स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि हम स्वयं भूल गए थे कि कभी स्यूल खाला में डिग्गी (हौज) भी बनी थीं, वह भी दो। वर्षों पुरानी डिग्गियों (हौज) को ढूंढना और उन्हें पुनर्जीवित कर उनका पानी आमजन को सिंचाई के लिए उपलब्ध करवाना किसी चमत्कार से कम नहीं।
बिष्ट बताते हैं कि वर्षात में भूक्षरण के कारण नदी का जलस्तर नीचे होना स्वाभाविक है। जबकि, खेत ऊपर। इस बात को ध्यान में रखकर नदी का जलस्तर ऊपर किया गया है ताकि कोई भी खेत इस पानी के उपयोग से वंचित न रहे। यहीं प्राकृतिक स्रोत का स्वच्छ जल आम राहगीर के लिए खोला गया है। वे बताते हैं कि प्राकृतिक जल को शुद्ध करने के लिए एक्वागॉर्ड के रूप में वॉटर लिली, वाटर मिंट व वाटर वियर- जिजेनिआईडीज जैसे पौधों की अहम भूमिका होती है।
हमें सबसे महत्वपूर्ण दिखने को मिला “ऑक्सीजन बैंक” जिसका नाम दिया गया “ऑक्सीजन बैंक व्यू-प्वाइंट”। जी हाँ लगभग एक किमी (01 किमी) के दायरे में चार (04) पीपल के पेड़। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से पीपल का पेड़ चौबीस घंटे रात-दिन निःशुल्क ऑक्सीजन देता है। निःसंदेह ऑक्सीजन की फैक्टरी हैं ये पीपल के पेड़।
इस पुनीत कार्य को मंजिल तक पहुँचाने में उप वनाधिकारी मनमोहन सिंह बिष्ट, वन वीट अधिकारी आरएम डबराल, वन दरोगा हुकुम सिंह कैंतुरा, वन दरोगा राकेश रावत व इन्द्र सिंह मनवाल आदि की अहम भूमिका है।
वरिष्ठ संपादक डीपी उनियाल का मानना है कि इस तरह की गतिविधियों से जहाँ स्कूली बच्चों को पुस्तकीय ज्ञान के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण को व्यावहारिक रूप से सीखने का अवसर प्राप्त हो सकेगा। वहीं, उच्च शिक्षा से जुड़े रिसर्च स्कॉलर्स के लिए भी उपयोगी साबित होगा। पर्यावरण प्रहरियों द्वारा उठाया गया महत्वपूर्ण प्रयास भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है।