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कवि पागल फकीरा की एक ग़ज़ल… कौन कहता है अफ़वाह फैला रहा हूँ मैं

पागल फकीरा
भावनगर, गुजरात


कौन कहता है अफ़वाह फैला रहा हूँ मैं,
ख़ुद ही अपना आशियाना जला रहा हूँ मैं।

अपने दुश्मनों से डरने का वक़्त नहीं अब,
रोज इश्क़ के अदुओं को दहला रहा हूँ मैं।

ज़माने में मुझे मारने की हिम्मत नहीं अब,
ख़ुद को ही मुक़म्मल नींद सुला रहा हूँ मैं।

आपकी हसीं महफ़िलों से वास्ता नहीं मेरा,
रक़ीबों को ख़ुद जनाज़े में बुला रहा हूँ मैं।

ज़माने की परवाह क्या करे अब फ़क़ीरा,
ख़ुद के ख़्वाबों में ख़ुद को भुला रहा हूँ मैं।

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आशियाना-घर, अदू- शत्रु.. दुश्मन, मुक़म्मल नींद- मौत, वास्ता- मतलब, रक़ीब- प्रेमिका का प्रेमी, जनाज़े- अर्थी उठाने

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