देश के मशहूर कवि/शाइर चेतन आनंद की एक ग़ज़ल … वो मेरे घर तक आकर लौट गया
चेतन आनंद
गाजियाबाद
ग़ज़ल
दिल तो मिलने का था लेकिन फिर सकुचाकर लौट गया।
जाने कितनी बार वो मेरे घर तक आकर लौट गया।
आज भी देखो मेरे दिल की खिड़की पर आते-आते,
एक तुम्हारा भोला मुखड़ा फिर शर्माकर लौट गया।
दिन भर मेरे साथ रहा, ढेरों बातें भी की उसने,
शाम हुई फिर छोड़ अकेला वो मुस्काकर लौट गया।
तेज़ हवा के झोंके जैसा एक तस्सवुर यूँ आया,
और तुम्हारी यादों की माला पहनाकर लौट गया।
जिन्हें कई बरसों से मैं सुलझाने की कोशिश में था,
उन यादों की कड़ियों को वो फिर उलझाकर लौट गया।
उसने तो पूरी कोशिश की, आँसू भी पौंछे मेरे,
एक हँसी का लम्हा पल में ही बतियाकर लौट गया।
मैं पागल हूँ या मुझमें ही समझ नहीं कोई ‘चेतन’,
जो कोई आया, बैठा, मुझको समझाकर लौट गया।