कवि धर्मेन्द्र उनियाल ‘धर्मी’ की एक गढ़वाली रचना..मैंगाई की मार छा.. यू कनु अत्याचार छा
धर्मेंद्र उनियाल ‘धर्मी’
अल्मोड़ा, उत्तराखंड
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मैंगाई की, मार छा,
यू कनु अत्याचार छा,
आटू ह्वैगी 35 रुप्या
चौंल चालीस पार छा!!
द्वि सौ रुप्या कडू तेल,
मैंगाई की ठेलम ठेल,
सुक्की रोटी कोरू भात
दाल भुज्जी झुट्टी बात
सच्चू त बस यू अचार छा।
मैंगाई की, मार छा,
यू कनु अत्याचार छा,
बच्चा मथी बौंड छुप्यां
बुढया बेड़ औबरा लुक्यां,
कुटयुं पिस्यूं खतम ह्वैगी
कैम मांगणू जुलम ह्वैगी।
यना यना समाचार छा!!
मैंगाई की, मार छा,
यू कनु अत्याचार छा,
स्कूल कॉलेज बन्द पंड्या
अर काम धंधा मंद पंड्या
क़र्ज़ पात मुन्ड मा धर्यूं
अर उधार न खातू भर्यूं
जिन्दगी कनी बेकार छा!!
मैंगाई की, मार छा,
यू कनु अत्याचार छा,
बस कू किराया ह्वैगी डबल
पूछा न अब पैट्रोल डीज़ल
घर सी भैर अब ओण कनै?
घर मा भी अब रौण कनै?
जनता बेचारी लाचार छा!!
मैंगाई की, मार छा,
यू कनु अत्याचार छा,
मुस्का पिछनै गिक्चु लुका,
नितर पाँच हजार चुका,
खैरि गिच्चा भितर बोला,
यथैं वथैं कखि ना डोला!!
कै मा बोनू अब बेकार छा!!
मैंगाई की, मार छा,
यू कनु अत्याचार छा!!
मैं त सच्ची बात बतौणू,
गरीबी पर छौं आंसू बगौणू
तुम भी अपणू दर्द बतावा
अपणी खैरि विपदा लगावा,
बल यू त मेरा विचार छा!!
मैंगाई की, मार छा,
यू कनु अत्याचार छा।।